SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६. तत्वार्थ सूत्र ।। ३५ ।। दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ३६ ॥ भवनेषु च ॥ ३७ ॥ व्यन्तराणां च ॥ ३८ ॥ परा पल्योपममधिकम् ॥३९॥ ज्योतिष्काणां च ॥४०॥ तदष्टभागोऽपरा ॥ ४१ ॥ लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ४२॥ इति तवार्थाधिगमे मोक्षशास्त्र चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥ अजीवकाया धर्माधर्म्माकाशपुद्गलाः ॥ १॥ द्रव्या णि ॥ २ ॥ जीवाश्च ॥ ३ ॥ नित्यावस्थितान्यरूपाणि नरक दूसरे तैं पहिचान । ऊपरको परिमान सुजान ॥ २३ ॥ प्रथम नरकको जघन प्रमान । वर्ष हजार दशकको जान ॥ यही भवन व्यतर के माहिं । व्यंतरे आयु उतकृष्टी पांय || २४|| किंचित अधिक पल्य परिमान । ज्योतिष याही भांति सुजान ॥ पये आठवें भाग निहार । जघन्य आरबल ज्योतिष धार ||२५| सागर आठ लोकांतिक देव | आयु कही सबकी इह भेव ॥ दोहा | तत्वारथ यह सूत्र है, मोक्ष शास्त्रको मूल । ४२ अध्याय तुर्य पूरण भयो, मिथ्या मतको शूळ ||२६|| छंदावजया । काय अजीव धर्म अधर्म अकाश रु पुद्गल भेद बखानो । जीव सु द्रव्य मिलाय दिये पंचास्ति सु कायको भेद जतानो॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy