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________________ 224 जितने विकेन्द्रित होते हैं, उतनी ही समाज व्यवस्था अच्छी होती है और ये दोनों जितने केन्द्रित होते हैं, उतनी ही अव्यवस्था फैलती है। एक समय था जब साम्राज्यवाद को प्रतिष्ठा प्राप्त थी, किन्तु अपने केन्द्रित स्वरूप के कारण आज वह अप्रतिष्ठित और अप्रासंगिक बन गया है। उसका. स्थान आज लोकतंत्र ने ले लिया है पर लोकतंत्र की सफलता भी इसी पर निर्भर है कि वह सत्ता और अर्थ को ज्यादा से ज्यादा विकेन्द्रित करे। जब भी ये दोनों सीमित हाथों में केन्द्रित होते हैं तो संघर्ष बढ़ता है अतः आवश्यक है कि इन दोनों को इस तरह विकेन्द्रित कर दिया जाए कि न तो सत्ता शीर्ष पर कुछ लोगों का अधिकार हो और न ही पूंजी कुछ लोगों के हाथों में सिमटकर रहे। इस दिशा में किया गया प्रस्थान समाज को स्वस्थ बनाने की दिशा में किया गया प्रस्थान होगा। 6. वैचारिक सहिष्णुता जिस समाज में अपने विचारों को सही मानने का आग्रह होता है तथा दूसरों के विचारों को सहन करने की मनोवृत्ति नहीं होती, वह समाज विकास की दिशा में चरणन्यास नहीं करता। समाज में सबके विचार समान हो जाएँ यह भी संभव नहीं हो सकता। अतः सामाजिक स्वस्थता के लिए वैचारिक सहिष्णुता एक महत्त्वपूर्ण घटक 7. करुणा का विकास जिस समाज में करुणा का विकास नहीं होता, वह स्वस्थ समाज नहीं होता। करुणा का विकास संवेदनशीलता से होता है। जिस व्यक्ति में संवेदना जितनी ज्यादा होती है, उसमें करुणा का विकास भी उतना ही अधिक होगा। करुणावान व्यक्ति न केवल मनुष्य के प्रति अपितु संसार के सभी प्राणियों के प्रति संवेदनशील बनता
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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