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________________ 225 8. आहारशुद्धि और व्यसनमुक्ति आहार मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। वह न केवल शरीर का ही पोषक है अपितु वृत्तियों के निर्माण में भी उसकी अहं भूमिका है। जैसा आहार होता है, वैसा ही विचार और व्यवहार होता है अतः स्वस्थ समाज संरचना में आहार-शुद्धि अति आवश्यक है। ___'नशा' जीवन का नाश करता है। नशे से न केवल आदमी का स्वास्थ्य बिगड़ता है अपितु उसकी चेतना भी विकृत बनती है। नशे में व्यक्ति को करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता। यह अर्थ-व्यवस्था को भी प्रभाक्ति करता है। समाज में बढ़ते हुए अपराधों का एक बहुत बड़ा कारण है-व्यसन। अतः व्यसन-मुक्ति से ही स्वस्थ समाज की कल्पना साकार हो सकती है। १. सामाजिक रूढ़ियों का परिष्कार - स्वस्थ समाज वह होता है, जहाँ अंधविश्वासों तथा अंधरूढ़ियों को आदर नहीं मिलता। जब अंधविश्वास परम्परा बन जाते हैं तब अंधरूढ़ियों का रूप ग्रहण कर लेते हैं। स्वस्थ समाज व्यवस्था सचेतन समाज व्यवस्था है। वहाँ किसी बात का मूल्य परम्परा नहीं अपितु उसकी गुणवत्ता से होता है अतः रूढियों से मुक्त समाज-व्यवस्था ही स्वस्थ समाज-व्यवस्था हो सकती है। 7. अणुव्रत का कार्यक्षेत्र 'अणुव्रत आन्दोलन' स्वस्थ समाज की संरचना का आन्दोलन है। समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रतिकार हेतु जन-जागरण इसका मुख्य उद्देश्य है। अणुव्रत के द्वारा मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्य किया जाता है, जिसका विवेचन जीवन विज्ञान की रूपरेखा पुस्तक में इस प्रकार किया गया है-..
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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