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________________ 223 अस्तित्व कायम रख सकती है। उसी प्रकार बड़े आदमी छोटों या अधीनस्थ कर्मचारियों का शोषण कर ही अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकते हैं। किन्तु स्वस्थ समाज संरचना के लिए यह उचित नहीं है। आदमी का अस्तित्व तो परस्परोपग्रह की भूमिका पर ही प्रतिष्ठित हो सकता है। एक मनुष्य का हित दूसरे के विरोध में नहीं अपितु सहयोग में ही निहित है। भले ही कुछ लोग अपने बौद्धिक सामर्थ्य से कुछ गरीब लोगों के श्रम का शोषण कर एक बार बड़े बन जाएँ, पर यह व्यवस्था बहुत लम्बी नहीं चल सकती और स्वस्थ समाज का निर्माण भी नहीं कर सकती। दूसरी ओर यदि आदमी दूसरों के श्रम का शोषण न कर उसका सम्मान करे तो न केवल वह स्वयं ही शांति का जीवन जीता है अपितु दूसरों के लिए भी शांत जीवन की पृष्ठभूमि का निर्माण करता है। समाज में स्वस्थ वातावरण का निर्माण करता है। 4. मानवीय संबंधों का विकास स्वस्थ समाज संरचना का चौथा सूत्र है-मानवीय संबंधों का विकास। आज ऐसा लगता है कि मानवीय संबंधों में बहुत नीरसता और कटुता आ गई है। अधिकारी और कर्मचारी, मालिक और नौकर के पारस्परिक संबंधों में समानता की अनुभूति नहीं है, जिसका परिणाम है आए दिन हड़ताल, तालाबन्दी, अप्रामाणिक व्यवहार। आज भाई-भाई के बीच, बाप-बेटे के बीच भी मानवीय संबंधों का हास हो रहा है। परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, खून के रिश्तों में दरार पड़ रही है। मानवीय संबंधों का विकास जहाँ अनेक समस्याओं का समाधान है, वहीं स्वस्थ समाज संरचना का भी आधार है। 5. सत्ता एवं अर्थ का विकेन्द्रीकरण सत्ता और अर्थ समाज-रचना के दो प्रमुख संघटक हैं। ये दोनों
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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