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________________ 164 प्रतिमा में श्रावक आरम्भ (हिंसा) का त्याग कर देता है किन्तु दूसरों से आरम्भ करवाने का त्याग नहीं करता। इसकी अवधि आठ मास की है। 9. प्रेष्य-परित्याग प्रतिमा श्रावक की नवी प्रतिमा का नाम प्रेष्य-परित्याग प्रतिमा है। प्रेष्य का अर्थ-सेवक, नौकर-चाकर है। इस प्रतिमा में श्रावक नौकर-चाकर आदि दूसरों से भी आरम्भ (हिंसा) करवाने का त्याग कर देता है। इस प्रतिमा का समय नौ मास है। 10. उद्दिष्टभल त्याग प्रतिमा श्रावक की दसवी प्रतिमा का नाम उद्दिष्टभक्त-त्याग प्रतिमा है। उद्दिष्टभक्त का अर्थ है-अपने उद्देश्य से बनाया गया आहार। इस प्रतिमा में श्रावक अपने निमित्त बनाये गए आहार को ग्रहण करने का त्याग कर देता है। वह अपने बालों का शस्त्र से मुण्डन करवाता है, किन्तु शिखा-चोटी अवश्य रखता है। घर संबंधी किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछे जाने पर 'मैं जानता हूँ' या 'मैं नहीं जानता'- इन दो वाक्यों से ज्यादा नहीं बोलता है। 11. श्रमणभूत प्रतिमा श्रावक की ग्यारहवी प्रतिमा का नाम श्रमणभूत प्रतिमा है। श्रमणभूत का अर्थ है-श्रमण-सदृश। इस प्रतिमा को स्वीकार करने वाला श्रावक घर में रहते हुए भी श्रमण जैसा आचरण करता है। वह बालों का मुण्डन करवाता है या लोच करवाता है। साधु की तरह ही पात्र लेकर ज्ञातिजनों के घर भिक्षा के लिए जाता है। वह हर घर से भिक्षा नहीं लेता है। वह अपना परिचय श्रमणोपासक के रूप में ही देता है। उसका हर आचार और व्यवहार श्रमण जैसा होता है। यह श्रावक की उत्कृष्ट कोटि की प्रतिमा है। इसका समय ग्यारह मास का है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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