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________________ 163 और इस छठी प्रतिमा में वह मैथुन से सर्वथा विरत होकर ब्रह्मचर्य ग्रहण कर लेता है। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा हेतु वह स्त्री के साथ एकान्त में नहीं बैठता, स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता, श्रृंगार नहीं करता तथा वासना को उत्तेजित करने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करता। 7. सचित्त - त्याग प्रतिमा श्रावक की सातवीं प्रतिमा का नाम सचित्त आहार - त्याग प्रतिमा है। छठी प्रतिमा में श्रावक जहां अपनी काम वासना पर विजय प्राप्त करता है, वहीं सातवीं प्रतिमा में वह अपनी भोगासक्ति पर विजय प्राप्त करता है। वह सब प्रकार की सचित्त वस्तुओं के आहार का त्याग कर देता है। केवल अचित्त आहार का ही सेवन करता है। इस प्रतिमा का समय सात मास है। 8. आरम्भ-त्याग प्रतिमा श्रावक की आठवीं प्रतिमा का नाम आरम्भ-त्याग प्रतिमा है। सातवीं प्रतिमा तक श्रावक अपने व्यक्तिगत जीवन में काफी संयमित हो जाता है किन्तु पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों से वह मुक्त नहीं हो पाता, अतः परिवार का निर्वहन करने के लिए व्यवसाय आदि कार्य उसे करना पड़ता है। जिसके कारण वह आरम्भ (हिंसा) से पूर्णतया बच नहीं पाता है। इस आठवीं प्रतिमा को स्वीकार करने वाला श्रावक अपने पारिवारिक, सामाजिक आदि उत्तरदायित्वों को अपने ज्येष्ठ पुत्र या अन्य किसी उत्तराधिकारी को संभला देता है और स्वयं व्यवसाय आदि से निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय धर्माराधना में व्यतीत करता है। इस प्रतिमा में श्रावक स्वयं तो व्यवसाय आदि में आरम्भ नहीं करता, किन्तु अपने पुत्र आदि को यथायोग्य पारिवारिक और व्यावसायिक मार्गदर्शन देता रहता है तथा अपनी सम्पत्ति पर भी स्वामित्व रखता है। इस प्रकार इस
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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