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________________ 118 मन के दोष- मन में यश-कीर्ति की भावना से सामायिक करना, अपने आपको धार्मिक दिखाने की भावना से सामायिक करना, मैं उच्च कुल का हूँ, यदि सामायिक नहीं करूंगा तो लोग क्या कहेंगे इस भय से सामायिक करना, मैं सामायिक कर रहा हूँ, इसका फल मुझे मिलेगा या नहीं मिलेगा इस संशय से सामायिक करना आदि मन के दोष हैं। वचन के दोष-सामायिक में कुत्सित वचनों का प्रयोग करना, कलह उत्पन्न करने वाले वचनों का प्रयोग करना, सामायिक के पाठ को अशुद्ध बोलना, बिना विचारे सहसा असत्य वचन बोलना आदि वचन के दोष हैं। काया के दोष- सामायिक में अस्थिर होकर बैठना, पापकारी प्रवृत्तियां करना, दीवार का सहारा लेकर आराम से बैठना, बैठे-बैठे .. हाथ-पैर फैलाना, शरीर से मैल उतारना, शोकग्रस्त मुद्रा में बैठना, सामायिक में नींद लेना आदि काया के दोष हैं। सामायिक का महत्त्व जैन धर्म में सामायिक (समभाव) की साधना को उत्कृष्ट साधना माना गया है। इसे चौदह पूर्वो का सार या सम्पूर्ण जिनवाणी का सार कहा गया है। जिस प्रकार दूध का सार घी, तिल का सार तेल है उसी प्रकार साधना का सार सामायिक है। आचारांग सूत्र में समता को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है। एक घंटे तक सामायिक की साधना करने वाला श्रावक भी उतने समय के लिए श्रमणवत् (साधु) हो जाता है। 2. चतुर्विंशतिस्तव षडावश्यक में दूसरा आवश्यक चतुर्विंशतिस्तव है। प्रथम सामायिक आवश्यक में साधक समस्त सावद्ययोगों का त्याग कर देता जाप का महत्व
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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