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________________ 117 1. सामायिक छः आवश्यक में प्रथम आवश्यक है – सामायिक । सामायिक श्रमण और श्रावक दोनों के लिए अवश्य करणीय है। यह समभाव की साधना है। समभाव की साधना के लिए आवश्यक है सावद्य ( पापकारी ) प्रवृत्तियों से विरत होना । श्रमण जीवनभर के लिए सावद्ययोग का प्रत्याख्यान करता है। श्रावक जीवनभर के लिए सावद्ययोग का प्रत्याख्यान नहीं कर सकता। वह सामायिक का अभ्यास करता है। एक सामायिक का कालमान 48 मिनिट है। वह एक मुहूर्त्त (48 मिनिट) के लिए सावद्ययोग से विरत रहने का संकल्प करता है। अठारह पाप सावद्ययोग हैं। इन अठारह पापों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - है। पहला वर्ग – प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह। - दूसरा वर्ग - क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष । तीसरा वर्ग - कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर- परिवाद, रति- अरति । चौथा वर्ग- -माया - मृषा और मिथ्यादर्शन शल्य । . -· इनका विवेचन नौ तत्त्वों में 'पाप तत्त्व' के अन्तर्गत किया गया व्यक्ति जब पापमय व्यापारों का परित्याग कर समभाव में अवस्थित होता है, तभी सामायिक होती है। अतः सामायिक करते समय साधक के समक्ष एक मानसिक चित्र बना रहना चाहिए कि मुझे इन अठारह पापों का सेवन नहीं करना है। हर परिस्थिति में समभाव रखना है। सामायिक के समय स्वाध्याय, ध्यान, अनुप्रेक्षा, जप आदि के प्रयोग करने चाहिए तथा सामायिक के दोषों से बचना चाहिए । सामायिक के दोष सामायिक के कुल 32 दोष बताये गये हैं। 10 मन के दोष हैं, 10 वचन के दोष हैं और 12 काया के दोष हैं।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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