SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्याय शिक्षा । मान्य रूपसे उत्पन्न हुए वस्तुके ज्ञानको कहते हैं। ...हा-अवग्रहके ग्रहण किये हुए मनुष्यत्वादि जाति, विशेष रूपसे पर्यालोचन करनेका नाम है, जैसे यह मनुष्य, बंगाली होना चाहिये, अमुक अमुक चिन्होंसे पंजाबी नहीं मालूम पड़ता। ... अवाय-ईहाके विषयको मजबूत करनेवाला मान है। जैसे 'यह बंगाली ही है। ....... धारणा-बहुत दृढ अवस्थामें आये हुए अवाय ही को कहते हैं । जो कि कालान्तरमें उस विषयके स्मरण होनेमें हेतुभूत बनता है। - क्रमसे उत्पन्न होते हुए इन बानोंकी उत्पत्ति, किसी वक्त क्रमसे जो नहीं मालूम पड़ती है, सो सौ कमलके पोंके विंधनेकी तरह शीघ्रताके जरीयेसे समझनी चाहिये। ... यह प्रथम सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष बता दिया, अब दूसरे पारमार्थिक प्रत्यक्षके ऊपर ध्यान देना चाहिये- .. ...... आत्मा मात्र है निमित्त जिसकी उत्पत्ति में, उस ज्ञानको पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं । इसके तीन भेद हैं-अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान । ..... अवधिज्ञान-अपने आवरणका क्षयोपशम होनेपर होता है। यह ज्ञान, रूपी द्रव्योंको ग्रहण करता है। इसके दो भेद हैं-भवप्रत्यय और गुणप्रत्ययं । जिस अवधिद्वानकी उत्पतिमें भव यानी गति कारण है, वह भवात्यय । यह ज्ञान स्वर्ग और नरकमें गये हुए जीवोंको मिल जाता है। और गुणप्रत्यय, आवरणके क्षयोपशमको पैदा करने वाले गुर्गो द्वारा, पुण्यात्मा. मनुष्यों और तियचों को मिलता है ।
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy