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________________ प्रत्यक्ष-प्रमाण। ग्रहण करती है। ____ अगर च विषयको प्राप्त कर चक्षु इन्द्रिय ग्रहण करेगी, तो इसमें दो विकल्प उठते हैं-'क्या विषयके पास चक्षु जाती है ? ' अथवा ' चक्षुके पास विषय आता है ?।। . इनमें दूसरा पक्ष तो बिलकुल दुर्बल है, क्योंकि दूरसे वृक्ष आदि देखते हुए मनुष्यके चक्षुके पास वृक्ष-पहाड वगैरह वस्तु नहीं आती । अब रहा प्रथम पक्ष, वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि इन्द्रियोंका यह नियम है कि शरीरसे बाहर न निकलना । देख लीजिये ! कोई भी ऐसी इन्द्रिय नहीं है, जोकि शरीरसे बाहर निकलकर विषयको ग्रहण करती हो जब यही बात है, तो फिर स्पर्शन वगैरह इन्द्रियों की तरह चक्षु इन्द्रिय भी शरीरहीमें रहकर विषयको ग्रहण करती हुई क्यों न माननी चाहिये । शब्द और गंध के पुद्गल, क्रियावान् होनेसे, श्रोत्र और नासिका इन्द्रियके पास आ सकते हैं,इस लिये श्रोत्र ओर घ्राण इन्द्रिय, प्राप्य कारिणी कही जाती हैं। इसीसे यह भी ढका नहीं रहता कि चक्षु आदि उक्त पांच इन्द्रियोंसे आतिरिक्त, हाथ पैर वगैरह, ज्ञानके हेतुभूत न होनेके कारण, इन्द्रिय शब्दसे व्यवहत नहीं किये जा सकते हैं। अतः चक्षु वगैरह पांच ही इन्द्रियां समझनी चाहियें। मन तो इन्द्रियोंसे अतिरिक्त, अनिन्द्रिय वा नोइन्द्रिय कहाता है । और .. वह चक्षुकी तरह अप्राप्यकारी है। इस सांव्यवहारिक प्रत्यक्षके मुख्य चार भेद हैं:अवग्रह १ ईहा २ अवाय ३ और धारणा ४ । । इनमें प्रथम अवग्रह-इन्द्रिय और अर्थक संबन्धसे पैदा हुए सत्ता मात्रके आलोचन अनंतर, मनुष्यत्वादि-अवान्तर सा.
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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