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________________ प्रत्यक्ष-प्रमाण । ___ अपने आवरणके क्षयोपशमद्वारा पैदा होता हुआ मन:पर्यायज्ञान, मनुष्य क्षेत्रमें रहे हुए संझी जीवोंके ग्रहण किये मन द्रव्य पर्यायको प्रकाश करता है। केवलज्ञान, मनावरण-दर्शनावरण-पोहनीय और अंतराय, इन चारों घाति काँके क्षय होने पर पैदा होता है। यह ज्ञान ही मनुष्यको सर्वज्ञ बनाता है। यह जान ही समस्त लोकालोकके त्रैकालिक द्रव्य पर्यायोंको आत्मामें सुस्पष्ट खडा कर देता है। यह शान, सिवाय मनुष्य, दूसरे किसीको पैदा नहीं हो सकता । यह शान, पुरुष ही को पास होता है , यह बात नहीं है, किंतु स्त्री जन भी इसे प्राप्त कर सकते हैं। यह शान पाने पर देहधारी मनुष्य जीवन्मुक्त कहलाता है। यह जीवन्मुक्त दो प्रकारका है । एक तीर्थंकरदेव, दूसरे सामान्य केवली । इनमें, प्रथम तीर्थकरदेवका परिचय देते हैं जिन्होंने तीसरे भवमें प्रबल पुण्यसे तीर्थकर नाम कर्म बांधकर, वहाँसे स्वर्गमें आकर स्वर्गकी अद्भुत संपदा भोगकर मनुष्य लोगमें उच्चतम राजेन्द्र कुलमें, नरक जीवोंके ऊपर भी मुखामृत वर्षाते हुए, अवधिज्ञान सहित जन्म लिया । और अपना सिंहासन कंपनेसे परमात्माका जन्म हुआ समझकर इन्द्रोंने नीचे आके मेरुपर्वत पर जिनको ले जाके बडी भक्तिसे जन्म महोत्सव किया। इस प्रकार जन्म अवस्था ही से किंकरभूत सुरासुरोंसे सेवाते हुए जिन्होंने, स्वतः प्राप्त हुई साम्राज्य लक्ष्मीको तृणके बराबर छोड, और सर्व प्रकार राग द्वेपसे रहित हो कर, शुक्ल 'ध्यानरूपी प्रबल अग्निसे समस्त घाति कर्म क्षय कर दिये, और समस्त वस्तुओंका प्रकाश करने वाला केवल ज्ञान प्राप्त
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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