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________________ उपा. यशोविजयरचिते "वसति" शब्द का यहाँ आधारता अर्थ विवक्षित है। "देवदत्त वसता है" इस वाक्य को सुनने पर श्रोता को यह जिज्ञासा होती है कि 'देवदत्त कहाँ बसता है ?' इस जिज्ञासा की निवृत्ति के लिए अनेक प्रकार के उत्तरबोधक वाक्य के प्रयोग होते हैं। कोई ऐसा उत्तर देता है कि "देवदत्त लोक में बसता है"। इस वाक्य से देवदत्त के निवास का आधार 'लोक' प्रतीत होता है, यह लोकरूप आधार बहुत विस्तृत है, लोक मे देवदत्ताधारता बहत व्यापक है। इसी आधारता के अभिप्राय से 'लोके वसति' ऐसा उत्तर दिया गया है। [नैगम के विविध अभिप्रायो में उत्तरोत्तर विशुद्धि ] उपर्युक्त उत्तर से श्रोता को पूर्ण संतोष नहीं होगा, उसे यह आकांक्षा बनी रहेगी कि 'लोक के किस विभाग में देवदत्त रहता है' ? कारण, लोक तो विशाल है। इस आशंका की निवृत्ति के लिए लोकरूप आधार में कुछ संकोच कर के उत्तर दिया जाता है कि "तिर्यग्लोक में देवदत्त रहता है' । पूरे लोक में जो आधारता है उस की अपेक्षा तिर्यग्लोकवृत्ति आधारता कुछ संकुचित अवश्य है, अतः श्रोता को पूर्व समाधान की अपेक्षा से इस उत्तर में कुछ अधिक सन्तोष होता है । पूर्व समाधान जिस नैगम विशेष के अभिप्राय से दिया गया था, उसकी अपेक्षा से इस नैगम विशेष में विशुद्धि स्पष्टरूप से ज्ञात हो जाती है। कारण, संकुचित आधार में इस नय का अभिप्राय है, जिस गम के अनुसार 'तिर्यग्लोके वसति' यह उत्तर दिया गया है। परन्तु इस उत्तर से भी शंका बनी रहती है कि तिर्यग्लोकान्तर्गत असख्य द्वीपसमुद्र हैं। उनमें से 'किस द्वीप में वसता है ?' इस शंका की निवृत्ति के लिए 'जम्बूद्वीपे वसति' अर्थात् 'जम्बूद्वीप में देवदत्त रहता है' ऐसा उत्तर दिया जाता है । यह उत्तर "तिर्यग्लोके वसति" इस उत्तर की अपेक्षा संकुचित आधार विषयक है । इसलिए यह नेगमविशेष पूर्व नैगमविशेष की अपेक्षा विशुद्धियुक्त है । परन्तु जम्बुद्वीप में भी बहुत से क्षेत्र हैं, उन क्षेत्रों में से किस क्षेत्र में देवदत्त बसता है, इस तरह की आकांक्षा बनी रहती है। इस आकांक्षा की निवृत्ति "भरतक्षेत्रे वसति" अर्थात् “भरत क्षेत्र में देवदत्त बसता है" इस उत्तर से हो जाती है, क्योंकि जम्बुद्वीपगत आधारता की अपेक्षा से संकुचित आधारता इस उत्तर में प्रतीत होती है। इस हेतु से यह उत्तर जिस नैगम विशेष के अभिप्राय से प्रवृत्त हुआ है उस नैगम विशेष में पूर्व नंगम विशेष की अपेक्षा से विशुद्धि ख्याल में आ जाती है। तथापि भरत क्षेत्र के भी दो भाग हैं, दक्षिणार्ध और उत्तरार्ध भरत, इन दोनों भागों में से किस भाग में देवदत्त बसता है, इस तरह की आकांक्षा दूर नहीं होती है । इसको दूर करने के लिए भरत क्षेत्र के दक्षिणार्धभाग में देवदत्त बसता है । इस तरह उत्तर दिया जाता है । यह उत्तर जिस नगम विशेष के अभिप्राय से दिया जाता है उस नैगमविशेष में पूर्व नैगम-विशेषापेक्षया विशुद्धि स्पष्ट प्रतीत हो जाती है । कारण भरतक्षेत्रगत आधारता की अपेक्षा से दक्षिणार्धगत आधारता संकुचित है । यहाँ भी यह आकांक्षा होती है कि 'दक्षिणार्ध के किस नगर में देवदत्त बसता है ?' क्योंकि, भरत क्षेत्र के दक्षिणार्ध में बहुत से नगर हैं, इसकी
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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