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________________ नयरहस्ये प्रस्थकदृष्टान्त: 'घटादिशब्दार्थीक्रया तत्राप्यस्त्येवेति चेत् ? न, असाधारणतदर्थक्रियाकारित्वस्यैव तदात्मकत्वप्रयोजकत्वात् । “तथापि प्रस्थक क्रियाविरहे नायं प्रस्थको, घटाद्यनात्मकत्वाच्च नाऽप्रस्थक इत्यनुभयरूपः स्यात् !' न स्यात्, प्रतियोगिकोटौ स्वस्थापि प्रवेशेन यावद्घटाधनात्मकत्वाऽसिद्धेः । 'अर्थक्रियाभावाभावाभ्यां द्रव्यभेदाभ्युपगमे ऋजुसूत्रमतानुप्रवेश' इति चेत् ? न, नैगमोपगतसङ्ग्रहणाय क्वाचित्कतथोपगमेन तदननु वेशात् । इत्थं च व्यक्तिभेदात्तद्वयक्तिगतं प्रस्थकत्वसामान्यमपि नास्तीति नात्र कश्चिद्दोषो विना व्यवहारबाधमिति दिक् । मानता है और 'प्रस्थक' जिस काल धान्यादिमापनरूप अपना कार्य नहीं करता है उस काल में प्रस्थक को प्रस्थक रूप से स्वीकार नहीं करता । वनगमन-दारुछेदन इत्यादि क्रिया के आधार काष्ठ आदि में भी 'प्रस्थक' का व्यपदेश नहीं मानता है क्योंकि यह "नय" विशुद्ध है, इसलिए इस नय की मान्यता के अनुसार जब धान्य आदि के मापन रूप क्रिया “प्रस्थक" से होती है, उसी काल में "प्रस्थक" में "प्रस्थक" व्यपदेश उचित है। [प्रस्थक में घटादिरूपता की आपत्ति का वारण ] यहाँ यह आशंका हो सकती है कि- “प्रस्थक का स्वरूप बन जाने पर भी धान्यमापनादि प्रस्थकसाध्यक्रिया के अभाव में यदि प्रस्थक न माना जायगा तो वह प्रस्थक न होकर प्रस्थक भिन्न पदार्थ होगा, वसा पदार्थ तो घट-पटादि है, इसलिए प्रस्थक में घटादि स्वरूप का प्रसंग होगा"-इस आशंका का समाधान संग्रहनय के मत से यह है कि प्रस्थक में घटादिस्वरूपता का प्रसंग तभी हो सकता है, जब जलाहरणादि रूप घटादि की अर्थक्रिया को प्रस्थक करता हो । परन्तु, प्रस्थक से जलाहरणादि क्रिय। तो होती नहीं हैं, इसलिए घटादिस्वरूपता का प्रसंग नहीं आ सकता है। यदि यह कहा जाय कि "प्रस्थक जलाहरणादिरूप अर्थ क्रिया को यद्यपि नहीं करता है, तथापि, जलाहरणादि जैसे घटादिसाध्य अर्थक्रिया है इसी प्रकार घटादिशब्द का प्रयोग होना भी घटादि की अर्थक्रिया है। प्रस्थक में घटादि शब्द का प्रयोग कोई पुरुष अपनी इच्छा के अनुसार कर सकता है। तब तो घटादि की अर्थक्रिया काल में घटादिस्वरूपता का प्रसंग प्रस्थक में आता ही है ।"-तो इस का समाधान यह है कि जिसकी असाधारण क्रिया को जो करता है, उसी में तत्स्वरूपता का व्यपदेश होता है । घटादि की असाधारण अर्थक्रिया जलाहरणादिरूप ही है। घटादिशब्दप्रयोगरूप अर्थ क्रिया घटादि की असाधारण क्रिया नहीं है, क्योंकि घटादि से इतर अर्थ में भी घटादिशब्द का प्रयोग कोई कर लेता है, इसलिए प्रस्थक से घटादि की असाधारण अर्थक्रिया जो जलाहरणादिरूप है वह नहीं होती है । इस हेतु से "प्रस्थक" में घटाद्यात्मकत्व का प्रसंग नहीं आता है। [प्रस्थक में अनुभयरूपता की आपत्ति का वारण ] यदि यह शंका की जाय कि- "संग्रहनय” के मत से धान्यमापन रूप प्रस्थक की असाधारण अर्थक्रिया जब नहीं है उस काल में प्रस्थक प्रस्थकरूप नहीं है और उस
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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