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________________ नयरहस्ये नैगमनयः ८५ तथाप्यनुवृत्तिधीजननस्वभावपरिणामत्वेन नानुवृत्तिधीजनकता, आत्माश्रयादिति चेत् ? न, वस्तुनस्तत्स्वभावस्य मृत्परिणामत्वादिना जनकत्वेऽदोषात्, जनकताया अपि परिणामरूपत्वेन नानात्वस्य दोषाऽनवहत्वात्संग्रहा देशादेकत्वसम्भवेन कार्यानुमानानच्छेदादिति दिक् । आता है और समानपरिणामरूप सामान्य में दुग्रहत्व का भी प्रसंग नहीं आता है । समानपरिणामरूप सामान्य यदि सामान्य घटित होता तो इन प्रसंगों का सम्भव होता । हमने तो अनुवृत्ति बुद्धि जनन स्वभाव ही सामान्य स्वीकार किया है । इसलिए किसी दोष का सम्भव नहीं है । [ अनुवृत्तिबुद्धि की कारणता में आत्माश्रय दोष की शंका ] ( तथाप्यनुवृत्ति) - उक्त समाधान से सन्तुष्ट न होकर यदि यह शंका की जाय कि समानपरिणाम को अनुगतप्रतीतिजनकतास्वभाव मानने पर विशेष और सामान्य में परस्परभेद यद्यपि सिद्ध हो जाता है, तो भी अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति सामान्य को अनुवृत्तिबुद्धि जनकतास्वभावरूप से ही कारण मानना होगा । इस का तो यह अर्थ हुआ, अनुवृत्तिबुद्धि जनकता में अनुवृत्तिबुद्धिजनकता ही कारण है । किन्तु यह तो सम्भव नहीं है । स्व के प्रति स्वयं ही कारण हो ऐसा तो किसी वादी को मान्य नहीं है क्योंकि स्व के प्रति स्व को कारण मानने में आत्माश्रय दोष का प्रसंग होता है । स्व की उत्पत्ति और ज्ञप्ति में स्व की अपेक्षा होना ही आत्माश्रय दोष कहा जाता है । यहाँ अनुवृत्तिबुद्धि जनकता के प्रति अनुवृत्तिबुद्धि जनकता की अपेक्षा होने से आत्माश्रय दोष स्पष्ट है । इसलिए अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति अनुवृत्तिबुद्धिजनकतास्वभाव कारण है, ऐसा कार्यकारणभाव न हो सकेगा तो अनुवृत्तिबुद्धि "स्याद्वाद" के मत में कैसे होगी ? [मृत्परिणामत्वादि रूप से कारणता निर्दोष-उत्तर ] सामाधानः- अनुवृत्तिबुद्धिजनकतास्वभाव वस्तु को अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति हम मृत्यरिणामत्वादिरूप से कारण मानेगे । ऐसा मानने में आत्माश्रय दोष का प्रसंग नहीं होगा, क्योंकि मृत्परिणाम के शरीर में जनकता का प्रवेश नहीं है । भावार्थ यह है कि घट, शराब, उदञ्चन, इत्यादि जितने मिट्टी के परिणाम है, उन सभी में 'यह मिट्टी का है' इस तरह का अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति मृत्परिणामत्वेन कारणता स्याद्वाद सिद्धान्त में मान्य है और मृत्परिणाम विशेष घट में “यह घट है, यह घट है" इस तरह की अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति मृत्परिणाम विशेषत्वेन कारणता मान्य है । इसी तरह यह शराव है.... यह शराव है इस तरह की अनुवृत्तिबुद्धि के प्रति मृत्परिणामविशेषत्वेन कारणता मान्य है । इसीलिए आत्माश्रय दोष का अवसर नहीं आता है । मूल में जो "आदि" पद है उस का तत्तत्मृत्परिणाम विशेषत्वेन तत्तत् अनुगतबुद्धि के प्रति कारणता का संग्रह करना, यही तात्पर्य है ।
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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