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________________ उपा. यशोविजयरचिते 'अविषय एवायं सामान्याकार' इत्यपि न युक्तम् , बीजाभावात् । 'अनादिवासनादोषो बीजमि'ति, चेत् ? न, वासनाया बोधरूपत्वे समनन्तरज्ञानेऽपि तत्प्रसङ्गात् । विशिष्टबोधरूपत्वे च किं वैशिष्ट्यमिति वाच्यम् । 'अनादिहेतुपरम्पराजन्यत्वमिति चेत् ? न, तत्रापि तन्मात्राऽविशेषात् , समुद्रोमिकल्पनाया अपि चित्रहेतुस्वभावाङ्गीकारं विना वक्तुमशक्यत्वादिति विवेचितमन्यत्र ॥ शंकाः-तत्तत् अनुवृत्तिबुद्धिरूप कार्य के भेद से अनुवृत्तिबुद्धि कारणता भी ततत्परिणामविशेषस्वरूप होगी। इसलिए घटादिवस्तु में भिन्न भिन्न कारणता सिद्ध होगा, तब तो, अनुवृत्तिबुद्धिजनकतारूप सामान्य भी भिन्न भिन्न होगा । अतः विशेष की अपेक्षा से सामान्य में विशेषता न होने का प्रसग पुनः आ जायगा और अनुवत्तिबुद्धि रूप कार्य से समानपरिणामरूप सामान्य का अनुमान जो किया जाता है, उस का उच्छेद प्रस'ग भी होगा ? समाधानः-जैन मत में वस्तुमात्र अनेक धर्मात्मक स्वीकृत है । अतः अनुवृत्तिबुद्धिजनकतास्वभाव सामान्य भी एकत्व और अनेकत्व इन दोनों धर्म से युक्त है । तब यदि अनुवृत्तिबुद्धिजनकता में भेद आता है, वह दोषकारक नहीं है क्योंकि भेद होने पर भी अनुवृत्तिबुद्धिजनकता में सग्रहनय के आदेश से एकत्व भी प्राप्त है । इसलिए विशेष पदार्थ से विशेषता न रहने का प्रसग नहीं आता है और कार्यलिङ्गक कारणानुमान का उच्छेद प्रसंग भी नहीं आता है। [सामान्यविषयक बुद्धि निर्विषयक होने की बौद्ध शंका ] (अविषय०) अतिरिक्त सामान्यवादी "कणाद" मत का निराकरण करने के बाद अब ज्ञानमात्र को परमार्थ माननेवाले बौद्धमत का निराकरण प्रस्तुत ग्रन्थ से किया जाता है । उस की शंका यह है कि समानाकार बोध अर्थात् अनुवृत्तिबुद्धि विषय के विना भी हो सकती है, तब समानपरिणामरूप सामान्य को मानने की क्या आवश्यकता है? “घटोऽय...घटोऽय” इत्यादि अनुवृत्तिवुद्धि निर्विषयक ही मान लेना उचित है। ___समाधान:-अनुगत विषय माने बिना अनुगताकार बुद्धि हो ही नहीं सकती, क्योंकि बुद्धि में तत्तदाकारता का नियामक तत्तद्विषय ही होता है । अनुवृत्तिबुद्धि का विषय अनुगत सामान्य यदि न माना जाय, तो निमित्त के अभाव से वह बुद्धि नहीं होगी। सामान्य से अतिरिक्त कोई भी निमित्त दृष्टिगोचर नहीं है । इसलिए समानपरिणामस्वरूप सामान्य को मानना आवश्यक है। शंका:-बौद्ध का कथन है कि आप की दृष्टि में सामान्य से अतिरिक्त अनुगतबुद्धि का निमित्त नहीं आता हो, इस से निमित्त का अभाव सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि अनादिवासनारूपदोष ही निर्विषयक अनुवृत्तिबुद्धि का बीज है, यह हम लोगों की दृष्टि का गोचर है । अतः अनादिवासनारूपदोष से ही वह बुद्धि होती है, इस के लिए सामान्य को मानने की जरूरत नहीं है ?
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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