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________________ प्रस्तावना का विस्तार ८००० श्लोकों जितना है । इस के अतिरिक्त बारहवीं सदी के मुनिचन्द्र सूरि ने भी इस पर टिप्पण लिखे हैं। [प्रकाशन-१ मल तथा टीका-यशोविजय ग्रन्थमाला, काशी १९०९-१२, २ मल, टीका तथा इंग्लिश टिप्पण व प्रस्तावना-स. ही. रा. कापडिया, गायकवाड ओरिएन्टल सीरीज १९४७-५२.] अनेकान्तवादप्रवेश—यह अनेकान्तजयपताका के विषयों का संक्षिप्त रूपान्तर है। इस का विस्तार ७२० श्लोक है। प्रकाशन-गुजराती अनुवाद-मणिलाल द्विवेदी, बडौदा १८९९; मल-हेमचन्द्राचार्य ग्रन्थावली, पाटन १९१९. ] शास्त्रवार्तासमुच्चय-यह ७०० श्लोकों का ग्रन्थ है। इस पर आचार्य ने स्वयं दो टीकाएं लिखी हैं - दिक्प्रदा टीका का विस्तार २२५० श्लोकों जितना तथा बृहत् टीका का विस्तार ७००० श्लोकों जितना है। जीव का स्वतंत्र अस्तित्व, कार्यकारणवाद, सर्वज्ञ का अस्तित्व, वेदोक्त हिंसा का निषेध, सांख्य तथा बौद्धों के एकान्तवादों का निषेध, ब्रह्मवाद का निषेध, मुक्ति का स्वरूप तथा द्रव्य का लक्षण - सत् ये इस के प्रमुख विषय हैं। इस पर यशोविजय उपाध्याय ने सत्रहवीं सदी में स्याद्वादकल्पलता नामक विस्तृत टीका लिखी है। [प्रकाशन-- १ मूल - जैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगर १९०७ २ टीकासहित - देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फंड, सूरत १९१४, ३ गोडीजी जैन उपाश्रय, बम्बई, १९२९] षड्दर्शनसमुच्चय- यह ८७ श्लोकों का छोटासा ग्रन्थ है। बौद्ध, न्याय, सांख्य, जैन, वैशेषिक, मीमांसक तथा लोकायत ( चार्वाक) इन सात दर्शनों के प्रमुख मतों का इस में संग्रह किया है। न्याय तथा वैशेषिक को कछ विद्वान समानतंत्र मानते हैं अतः नाम षड्दर्शनसमच्चय रखा है । देवता, जीव, जगत् तथा प्रमाण इन चार विषयों के बारे में इन दर्शनों के क्या मत हैं इस का प्रामाणिक वर्णन ग्रन्थ में मिल जाता . है । अतः भारतीय दर्शन के प्रारम्भिक विद्यार्थी के लिए पाठ्य पुस्तक के रूप में यह बहुमूल्य सिद्ध हुआ है । इस पर चौदहवीं सदी में सोम
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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