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________________ ६२ विश्वतत्त्वप्रकाशः तिलक ने, पन्द्रहवीं सदी में गुणरत्न ने तथा इन के बाद मणिभद्र ने टीका लिखी है। . [प्रकाशन-- १ गुणरत्नकृत टोका सहित – सं. एल्. सुआली, बिब्लॉथिका इन्डिका, कलकत्ता १९०५-७; २ मणिभद्रटीकासहित - सं. दामोदरलाल गोस्वामी, चौखम्बा संस्कृत सीरीज १९०५; ३ गुणरत्नटीकासहित - आत्मानन्द सभा, भावनगर १९०७; ४ मूल – जैन धर्मप्रसारक सभा, भावनगर, १९१८] सर्वज्ञसिद्धि-सर्वज्ञ के अस्तित्व को सिद्ध करनेवाले इस ग्रन्थ का विस्तार ३०० श्लोकों जितना है। इस पर आचार्य ने स्वयं टीका लिखी है। प्रकाशन-ऋषभदेव केसरीमल प्रकाशनसंस्था, रतलाम १९२४] अनेकान्तसिद्धि, आत्मसिद्धि, स्याद्वादकुचोद्यपरिहार-इन तीन ग्रन्थों का उल्लेख आचार्य ने अनेकान्तजयपताका में किया है। ये उपलब्ध नही हैं। भावनासिद्धि-इस का उल्लेख आचार्य ने सर्वज्ञसिद्धि में किया है। यह भी उपलब्ध नही है। परलोकसिद्धि-इस का उल्लेख सुमति गणी ने किया है। यह भी अनुपलब्ध है। - न्यायप्रवेशटीका-पांचवीं सदी के बौद्ध आचार्य दिग्नाग के न्यायप्रवेश की यह टीका है। जैनेतर ग्रन्थों पर जैन आचार्यों ने कई टीकाएं लिखीं हैं। इस परम्परा का प्रारम्भ हरिभद्र की प्रस्तुत टीका से होता है । इस का विस्तार ६०० श्लोकों जितना है। इस पर श्रीचन्द्र सूरि ने टिप्पण लिखे हैं। . [प्रकाशन—सं. आ. बा. ध्रुव, गायकवाड ओरिएन्टल सीरीज, बडौदा १९२७-३०.] तत्त्वार्थाधिगमटीका- उमास्वाति के भाष्यसहित तत्त्वार्थ की श्वेतांबर परम्परा में यह पहली टीका है। इस का विस्तार ११००० श्लोकों जितना है । हरिभद्र इसे पूरी नही कर सके थे – इस का उत्तरार्ध यशोभद्र द्वारा लिखा गया है।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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