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________________ -८३] सांख्यदर्शनविचारः २७१ वा। प्रथमपक्षे असिद्धो हेतुः। बुद्धयादिपृथिव्यादीनां परस्परं व्यावृत्तत्वेनैव प्रमितत्वात् । नो चेदिष्टानिष्टवस्तुषु जनानां प्रवृत्तिनिवृत्तिव्यवहारो न जाघट्यते । 'द्वितीयपक्षेऽप्यसिद्ध एव। घटपटलकुटमुकुटशकटादिषु च्छेद्यत्वदर्शनात् । अनैकान्तिकश्च आत्मनोऽछेद्यत्वेऽपि प्रकृतिजन्यत्वाभावात्। ततःप्रसाधकप्रमाणाभावात् तस्य खरविषाणवदभाव एव स्यात् । [ ८३. सत्कार्यवादविचारः।] तदभावेऽपि कारणे विद्यमानमेव महदादि कार्यमाविर्भवतीति नोपपनीपद्यते। कारणे कार्यसभावावेदकप्रमाणाभावात्। ननु तदावेदकप्रमाणमस्त्येव असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसंभवाभावात् । शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत् कार्यम् ॥ इति चेन्न । तेषां हेतूनामनेकदोषदुष्टत्वेन सत्कार्यप्रसाधकत्वासंभवात् । तथा हि। असदकरणादिति कोऽर्थः। ननु अविद्यमानस्य कार्यस्य खरविषाणवत् करणायोगात् सत् कार्यमिति चेन। तन्त्वादिष्वविद्यमानस्यैव तथा पृथ्वी आदि ( अचेतन तत्व ) में विभाग प्रमाणसिद्ध है। यदि विभाग न होता तो इष्ट की प्राप्ति के लिए तथा अनिष्ट के परिहार के लिए प्रयत्न ही नही होता। अविभक्त का अर्थ अच्छेद्य मान कर भी यह हेतु सार्थक नही होता - घट आदि पदार्थ तो छेद्य है यह प्रत्यक्षसे सिद्ध है। दूसरे, आत्मा अच्छेद्य होने पर भी प्रकृति से उत्पन्न नही हैं। अतः विश्वरूप के अविभाग से भी प्रकृति की सिद्धि नही होती। ८२. सत्कार्य वादका विचार-सांख्य मतका दूसरा प्रमुख सिद्धान्त है कारण में ही कार्य का विद्यमान होना । इस के समर्थन में उन्हों ने निम्न हेतु प्रस्तुत किये हैं, 'असत् का निर्माण नही होता, उपादान कारण से ही कार्य होता है, सब सम्भव नही है (कारण से ही कार्य होता है ), शक्तियुक्त कारण से ही शक्य कार्य होता है तथा कारण विद्यमान है - इन सब हेतुओं से कारण में कार्य का अस्तित्व स्पष्ट होता है'। इन का अब क्रमशः विचार करते हैं । १ प्रकृतितत्त्वस्य । २ कारणे सदेव कार्यम् आविर्भवति असदकरणात उपादानग्रहणादित्यादि। ~
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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