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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [-८२ त्वात् अजडत्वात् अजन्यत्वात् स्वसंवेद्यत्वात् व्यतिरेके पटादिवदिति च। रागादिबुद्धयादयः आत्मातिरिक्तपदार्थेष्वन्विता न भवन्ति चेतनत्वात् स्वसंवेद्यत्वात् अनुभववत् । तथा आत्मातिरिक्तपदार्थाः न रागादिबुद्धयादिमन्तः जडत्वात् जन्यत्वात् अस्वसंवेद्यत्वात् पटादिवदिति । तस्मात् समन्वयादिति हेतोरपि न प्रकृतिसिद्धिः। ननु शक्तितः प्रवृत्तेश्चेति प्रकृतिसिद्धिर्भविष्यतीति चेत् शक्तितः प्रवृत्तरिति कोऽर्थः। शक्तं कारणं कार्योत्पत्तौ प्रवर्तते इति चेत् नैतावता प्रकृतिसिद्धिः। कुतः पटोत्पत्ती तन्त्वादयः शक्ता :एव प्रवर्तन्ते, तन्तूत्पत्ती शक्ता एव अंशवः प्रवर्तन्ते इत्यादिक्रमेण परमाणूनामेवं मूलकारणत्वम् । तेषामपि नित्यत्वं प्रागेव समर्थितमिति न प्रकृतिजन्यत्वम् । तस्माच्छ. तितःप्रवृत्तश्चेति हेतोरपि न प्रकृतितत्त्वं सेत्स्यति । अथ कारणकार्यविभागात् प्रकृतितत्त्वसिद्धिरिति चेन्न। तत्रापि बुद्धयादिकार्याणामात्मोपादानत्वमितरकार्याणां पुद्गलोपादानत्वमिति प्रागेव समर्थितत्वात् । ननु विश्वरूपस्याविभागात् प्रधानतत्त्वं सेत्स्यतीति चेन्न। तस्यापि विचारासहत्वात्। तथा हि । कोऽयमविभागो नाम अव्यावृत्तत्व मच्छेद्यत्वं शक्ति से ही प्रवृत्ति होती है - समर्थ कारण से ही योग्य कार्य उत्पन्न होता है - अतः विश्व रूप कार्य का एक मल कारण होना चाहिए यह अनुमान भी ठीक नही । वस्त्र के कारण तन्तु हैं, तन्तु के कारण अंश ( कपास के रेशे ) हैं - इस प्रकार कार्य और कारण का सम्बन्ध अन्त में परमाणु तक होता है । अतः परमाणु मूल कारण सिद्ध होते हैं। तथा परमाणु नित्य हैं यह पहले ही स्पष्ट किया है। अतः मल कारण प्रकृति की सिद्धि इस हेतु से सम्भव नही। कारण और कार्य का निश्चित विभाग है अतः सब कार्यों का एक मूल कारण होना चाहिए यह अनुमान भी व्यर्थ है क्यों कि बुद्धि आदि आत्मा के कार्य हैं और रूप आदि पुद्गल के कार्य हैं यह पहले स्पष्ट किया है। ( आत्मा और पुद्गल किसी कारण के कार्य हों यह इस से सिद्ध नहीं होता।) विश्वरूप अविभक्त है अतः उस का एक मूल कारण होना चाहिए यह कथन भी ठीक नही क्यों कि बुद्धि आदि (चेतन तत्त्व ) १ पटकार्योत्पत्ती । २ कार्पास । ३ अभिन्नत्वम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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