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________________ දි आस- परीक्षा । भेदने का अभाव वैशेषिक कैसे कर सकते हैं । अथवा थोड़ी देर के लिये ईश्वर को कर्त्ता मान भी लिया जाय, तो भी यह प्रश्न उपस्थित हुए बिना नहीं रह सकता किप्रणेता- मोक्षमार्गस्य, नाशरीरोऽन्यमुक्तवत् । सशरीरस्तु नाऽकर्मा, संभवत्यज्ञजंतुवत् ॥ ११ ॥ " वह मोक्ष मार्ग का उपदेशक ईश्वर शरीर -रहित है या शरीर सहित । यदि शरीर-रहित है, तो भी अन्यमुक्तात्माओं की तरह मोक्षमार्ग का उपदेशक नहीं हो सकता, क्योंकि जैसे ईश्वर शरीररहित है, वैसे ही अन्यमुक्तजीव भी शरीर रहित हैं, "फिर ईश्वर ही मोक्ष का उपाय बतला सकता है, अन्यमुक्त जीव नहीं बतला सकते -" इस बात के मानने के लिये सिवाय आपके और कोई तैयार नहीं हो सकता । और यदि ईश्वर शरीर-सहित है, तो साधारण शरीर-धारी अज्ञानी जीवों की तरह कर्म-रहित नहीं होसकता । ( वैशेषिक ) मोक्ष का उपाय बतलाने के लिये ईश्वर को न शरीर सहित होने की ज़रूरत है, और न शरीर रहित होने की आवश्यकता है, किन्तु प्रत्येक कार्य करने के लिये ज्ञान, इच्छा, और प्रयत्न की ज़रूरत है, ये तीनों शक्तियां उसमें हैं ही, इसलिये ईश्वर को मोक्षमार्गका उपदेशक मानने में कोई बाधा नहीं आ सकती । (जैन)
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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