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________________ वैशेषिकमत- विचार न चेच्छाशक्तिरीशस्य, कर्माभावेऽपि युज्यते । तदिच्छा वाऽनभिव्यक्ता, क्रियाहेतुः कुतोऽज्ञवत् ॥ १२॥ आप ईश्वर को कर्म रहित मानते हो, इस कारण उस ईश्वर में इच्छा और प्रयत्न ही सिद्ध नहीं हो सकते, क्योंकि सब जगह कर्म सहित जीवों में ही इच्छा और प्रयत्न देखे जाते हैं; फिर ज्ञान, इच्छा, और प्रयत्न से ईश्वर मोक्ष का मार्ग बतलाता है यह बात भी आप की सिद्ध नहीं होती। यदि थोड़ी देर के लिये ईश्वर में इच्छा मान भी ली जाय तो भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कि वह इच्छा अभिव्यक्त है या अनभिव्यक्त (आच्छादित), यदि अभिव्यक्त मानोगे तो उसका व्यक्त कराने वाला कोई चाहिये, जो उसका व्यक्त कराने वाला मानोगे वह भी यदि अनित्य है तो बिना इच्छा के व्यक्त हुए ही कैसे उत्पन्न होगया ? यह प्रश्न उपस्थित होता है, और यदि इच्छा का व्यक्त करने वाला कारण नित्य है, तो उसने पहले से ही इच्छा को व्यक्त क्यों नहीं किया ? यह प्रश्न उपस्थित होता है । इसलिये इच्छा को अभिव्यक्त नहीं मान सकते । और अनभिव्यक्त इच्छा से तो कभी कार्य होता ही नहीं है, इसलिये उसका तो मानना ही फ़िज़ूल है । ज्ञानशक्यैव निःशेषकार्योत्पत्तौ प्रभुः किल । सदेश्वर इति ख्यानेऽनुमानमनिदर्शनम् ॥ १३ ॥ 1
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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