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________________ वैशेषिकमत- विचार । Rię ने 1: । समर्थ कारण के रहते हुए भी समस्त कार्य एक साथ होते नहीं हैं, इसलिये तो अन्वय नहीं बना । अथवा "जब २ जो २ कार्य होते हैं, वे सब ईश्वर के रहने पर ही होते हैं" यदि इस प्रकार का अन्वय माना भी जाय तो ऐसा अन्वय और जीवों के साथ भी बन जाता है क्योंकि वैशेषिक के मत से और जीव भी व्यापक व सर्वथा नित्य हैं। जब जो २ कार्य होते हैं, 'अन्य जीव भी मौजूद रहते ही हैं, फिर ईश्वर में क्या विशेषता है जो उस के साथ ही अन्वय माना जाय और जीवों के साथ न माना जाय । व्यतिरेक भी तब बन सकता है जब कि ईश्वर के अभाव में कार्यों का अभाव सिद्ध हो, क्योंकि कारण के अभाव में कार्यों के अभाव होने को ही व्यतिरेक कहते हैं, और ईश्वर का अभाव कभी होता नहीं, इसलिये व्यतिरेक भी नहीं बना। और अन्वय व्यतिरेक के न बनने से ईश्वर कारण नहीं हो सका । कारण के न बनने से ईश्वर अनादि नहीं सिद्ध हुआ । अनादि सिद्ध न होने से, बिना प्रयत्न के ही मुक्त होना नहीं बना । बिना प्रयत्न के ही मुक्त न बनने से, हमेशा कर्म रहितपना ईश्वर में सिद्ध नहीं हो सका । और जब हमेशा कर्मरहितपना भी ईश्वर में खंडित होगया, तब इस हमेशा कर्म-रहितपने को श्री हेतुमान कर जिनेन्द्र या ईश्वर में कर्म पर्वत के i
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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