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________________ अपने अपने भंडार में स्थित अमूल्य हस्तप्रतों को प्रतिलिपि करने के लिये हमें समर्पित किया । ३-मारतीय प्राच्यतस्व प्रकाशन समिति के सञ्चालक सुश्रावक मण-जिन के परिश्रम से नवनिर्मित कर्मसिद्धान्त के अनेक ग्रन्थों का पूर्व में प्रकाशन हो चूका है-और इस ग्रन्थसंग्रह का मी प्रकाशन हो रहा है। ४-ज्ञानोदय प्रि. प्रेस के मेनेजर सुश्रावक फतेहचन्दजी और पिण्डवाडा धामिक पाठशाला के शिक्षक अफरिडिंग सहायक सुश्रावक चम्पकलालजी जिन्हों के उत्साहपूर्ण सहयोग से इस ग्रन्थ का शुद्धतया मरण हो सका। ये सब धन्यवाद के पात्र है। शुभेच्छा पूर्वाचार्य महषिओं ने मुमुक्षु साधु और श्रावक गण स्वाध्याय द्वारा अपने चित्त को एकाग्र बमा कर कर्मनिर्जरा की साधना करें यह एकमात्र उद्देश्य से भिन्न भिन्न बहुधा असावध विषयों पर अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया। श्री जैन संघ ने तन-मन और धन के उचित व्यय से अनेक ग्रन्थ भंडारों का निर्माण कर के उस प्रन्थ राशि का संरक्षण किया और आज भी ये दोनों कार्य चालु है। इन ग्रन्थ भंडारों में सञ्चित इस अमूल्य वाद संग्रह का प्रकाशन हुआ है-तो यह शुभेच्छा की अधिकारी मुमुक्षु गण इसके स्वाध्यायादि सदुपयोग द्वारा सन्मार्ग की उपासना कर के मिथ्या कदाग्रहों के विष का वमन कर के अपने शाश्वत कल्याण की ओर आगे कूच करें। सं० २०३१ जैननगर उपाश्रय -जयसुन्दरविजय पालडी-अहमदाबाद )
SR No.022440
Book TitleVadsangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Upadhyay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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