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________________ ६-अदृष्टवाद में शभाशभक्रियाजन्य पुण्य और पापरूप अदृष्ट को नहीं मानने वाले नास्तिक मत का खण्डन किया गया है । अदृष्ट की सिद्धि के लिये युक्तियां बताकर बीच में शुभाशुभ क्रिया के ध्वंस से ही अदृष्ट को चरितार्थ करने वाले उच्छङ्कलविचारकों के मत का खण्डन किया है। ___अष्ट सिद्ध होने के बाद उसको पौद्गलिक नहीं किन्तु आत्मा के विशेषगुण रूप मानने वाले नैयायिको के मत में अनेक बाधक युक्तियाँ बताकर अदृष्ट के पौदगलिकत्व की सिद्धि की गई है। .. अन्त में हमारी ओर से इस वादसंग्रह गत विशेषनामों की सूचि और शुद्धिपत्रक भी दिया हुआ है। उपकार स्मरण १-५० पू० स्व० कर्मसिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. सा., ___ २-प० पू० न्यायविशारद आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा०, ३-५०पू० शान्तमूत्ति श्री धर्मघोष वि०म० सा० ४-और प० पू० गीतार्थ मुनि भगवन्त श्री जयघोष वि०गणिवर ये सभी हमारे पुज्य गुरुदेवों की अनहद कृपा-जिसके प्रभाव से ये सभी प्रकरणों का प्रकाशन हो सका-मैं कभी भूल नहीं सकता। धन्यवाद वितरण १-लुनावा (राज०) निवासी श्रेष्ठी मनालाल रिखबाजी जिन्होंने इस ग्रन्थसंग्रह के प्रकाशन के द्रव्य व्यय का अमूल्य लाभ लिया। . २-(a)खंभात-जैन अमरशाला के भंडार के सुश्रावक व्यवस्थापकगण-तथा (b) अहमदाबाद-देवशापाडा भंडार के सुश्रावक कार्यवाहक गण तथा (6) एल० डी० इन्स्टीट्यूट के डायरेक्टर-जिन्होंने
SR No.022440
Book TitleVadsangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Upadhyay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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