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________________ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र है। उन सम्यग्दर्शनादिके विषयभूत जीवादि पदार्थोके शान होनेका उपाय इस सूत्रमें बताया है। इन्ही प्रमाण और नयोंसे जीवादिक पदार्थों का सम्यग् विवेचन हो सकता है । इनके अतिरिक्त जीवादिक पदार्थोंके जाननेका दूसरा उपाय नहीं है । इसलिये जीवादिक पदार्थोंको जाननेके उपायभूत प्रमाण और नय इन दोनोंका विवेचन भी करना चाहिये । यद्यपि बहुतसे प्राचीन ग्रन्थोंमें इनका वर्णन किया गया है, तथापि उनमें कई तो अत्यन्त विस्तीर्ण हैं और कई अत्यन्त गम्भीर हैं। अर्थात् छोटे होने परभी उनका भाव इतना कठिन है कि सहसा समझमें नहीं आसकता । इसलिये उनमें बालकोंका प्रवेश नहीं हो सकता । अतः प्रमाणनयात्मक न्यायका सरल उपायोंद्वारा ज्ञान करानेवाले शास्त्रोंमें उन जिज्ञासु बालकोंका प्रवेश हो सके इसलिये इस ग्रंथका आरम्भ किया जाता है। इह हि प्रमाणनयविवेचनमुद्देश-लक्षणनिर्देश-परीक्षाद्वारेण क्रियते । अनुद्दिष्टस्य लक्षणनिर्देशानुपपत्तेः । अनिर्दिष्टलक्षणस्य परीक्षितुमशक्यत्वात् । अपरीक्षितस्य विवेचनायोगात् । लोकशास्त्रयोरपि तथैव वस्तुविवेचनप्रसिद्धेः। यहां पर उद्देश लक्षण और परीक्षा इन तीन प्रकारोंसे प्रमाण और नयका विचार किया जाता है । क्योंकि जबतक किसीका उद्देश न किया जायगा, अर्थात् उसके नाममात्र. का कथन न किया जायगा, या उसका स्वरूप न दिखाया जायगा, तबतक उस विषयका विशेष कथन नहीं हो सकता १ जीवादि पदार्थोके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन, जाननेको सम्यग्ज्ञान तथा उनमेंसे हेयके त्याग और उपादेयके ग्रहण करनेको सम्यक्चारित्र कहते हैं ।
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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