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________________ (४५) विशिष्ट ये हेतु एइखाने अग्निथाकिलेई धूम हइते पारे । अग्निर अभावे धूम थाकेना । केन ना ये हेतुर व्याप्ति कोनओ प्रकारेर साध्येर संगे निश्चित हइया छे सेइ हेतुरइ प्रयोग करा याय । किंतु विद्वान् लोक उदाहरण प्रभृतिर सहायता ना लइयाइ सेइ हेतुर प्रयोगद्वारइ व्याप्तिर निश्चय करिया लय एवं सेइ अविनाभावी हेतुर प्रयोगद्वाराइ साध्येर सिद्धि हइया याय । अतएव अविनाभावी हेतुर आधार जानाइवार जन्य पक्षेर प्रयोग करा आवश्यकीय वला हइयाछे ॥९४॥९५॥९६ ६७॥९८॥ आगमस्वरूप । आप्तवचनादिनिबंधनमर्थज्ञानमागमः ॥ ९९ ॥ सहजयोग्यतासंकेतवशाद्धि शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः ॥ १० ॥ यथा मेर्वादयः संति ॥१०१॥ हिंदी-आप्तके वचन आदिसे होनेवाले पदार्थोके ज्ञानको आगम कहते हैं । आप्तके वचन आदिसे पदार्थोंका ज्ञान क्यों हो जाता है ? यह संशय युक्त नहीं क्योंकि शब्दके और अर्थों के अन्दर एक स्वाभाविक योग्यता वाच्य वाचक शक्ति है अर्थात् शब्दमें वाचकशक्ति और अर्थमें वाच्य शाक्त है उसमें संकेत होनेसे अर्थात् इस शब्दका वाच्य यह अर्थ है ऐसा ज्ञान होजानेसे शब्द आदिसे पदार्थोंका ज्ञान होता है । जिस प्रकार मेरु आदि पदार्थ हैं अर्थात् मेरु शब्दके
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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