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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक (६४) . अर्थ-प्रतिषेध्य पदार्थ से विरुद्ध व्याप्त श्रादि की उपलब्धि छह प्रकार की है। विवेचन-विरुद्धोपलब्धि के सात भेद बताये थे। उनमें से पहले भेद का स्वभावविरुद्धोपलब्धि का, उदाहरण बताया जा चुका है। शेष छह भेद यह हैं-(१) विरुद्धव्याप्तोपलब्धि (२) विरुद्ध कार्योपलब्धि (३) विरुद्ध कारणोपलब्धि (४) विरुद्र पूर्वचरोपलब्धि (५) विरुद्धउत्तरचरोपलब्धि और (६) विरुद्ध सहचरोपलब्धि । विरुद्ध व्याप्तोपलब्धि विरुद्धव्याप्तोपलब्धिर्यथा-नास्त्यस्य पुंसस्तत्त्वेषु निश्चयस्तत्र सन्देहात् ॥ ८७ ॥ अर्थ-इस पुरुष को तत्त्वों में निश्चय नहीं है, क्योंकि उसे तत्त्वों में सन्देह है । यह विरुद्ध व्याप्तोपलब्धि का उदाहरण है। ___ विवेचन यहाँ तत्त्वों का निश्चय प्रतिषेध्य है, उससे विरुद्ध अनिश्चय है और उससे व्याप्त सन्देह की उपलब्धि है। विरुद्धकार्योपलब्धि विरुद्ध कार्योपलब्धिर्यथा-न विद्यतेऽस्यक्रोधाद्युपशांतिवंदनविकारादेः ।।८८॥ अर्थ-इस पुरुष के क्रोध आदि शान्त नहीं हैं, क्योंकि चेहरे पर विकार आदि पाये जाते हैं। विवेचन-यहाँ प्रनिषेध्य क्रोधादिक की शान्ति है, उससे
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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