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________________ (५१) [ प्रथम परिच्छेद अर्थ-अन्यथानुपपत्तिरूप पूर्वोक्त हेतु दो प्रकार का है(१) उपलब्धिरूप और (२) अनुपलब्धिरूप । उपलब्धिरूप हेतु से विधि और निषेध दोनों सिद्ध होते हैं और अनुपलब्धिरूप हेतु से भी दोनों सिद्ध होते हैं। विवेचन-विधि-सद्भावरूप हेतु को उपलब्धि हेतु कहत हैं और निषेध अर्थात् असद्भावरूप हेतु अनुपलब्धि कहलाता है। कुछ लोगों की यह मान्यता है कि उपलब्धि हेतु विधिसाधक और अनुपलब्धिहेतु निषेधसाधक ही होता है। इस मान्यता का विरोध करते हुए यहाँ दोनों प्रकार के हेतुओं को दोनों का साधक बताया गया है। प्रत्येक हेत जैसे अपने सम्बन्धी का सद्भाव सिद्ध करता है उसी प्रकार अपने विरोधी का अभाव भी सिद्ध कर सकता है। विधि-निषेध की व्याख्या विधिः सदंशः ॥५६॥ प्रतिषेधोऽसदंश ॥५॥ अर्थ-सत् अंश को विधि कहते हैं। असत् अंश को प्रतिषेध कहते हैं। विवेचन-प्रत्येक वस्तु में सत्त्व और असत्त्व दोनों धर्म पाये जाते हैं । अतएव सत्त्व वस्तु का एक अंश (धर्म) है और असत्त्व भी एक अंश है । सत्त्व और असत्त्व सर्वथा पृथक् पदार्थ नहीं हैं। इसीलिए सूत्रों में 'अंश' शब्द का प्रयोग किया गया है। वैशेषिक लोग सत्त्व (सामान्य) और अभाव को अलग पदार्थ मानते हैं, - यहाँ उनकी इस मान्यता का परोक्षरूप में विरोध किया गया है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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