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________________ प्रमाण-नय-तन्वालोक ] (५०) यथा— तस्मादग्निरत्र ॥५२॥ अर्थ-साध्य का पक्ष में दोहराना निगमन कहलाता है । जैसे- 'इसलिए यहाँ अग्नि है।' विवेचन – पक्ष में साध्य का होना सर्वप्रथम बताया गया था, फिर व्याप्ति आदि बोलने के बाद अन्त में दूसरी बार कहा जाता है'इसलिये यहाँ है' साध्य का यह दोहराना निगमन है । पाँच अवयव वाला अनुमान इस प्रकार का है (१) पर्वत में अग्नि है (पक्ष) (२) क्योंकि पर्वत में धूम है ( हेतु) (३) जहाँ धूम होता है वहाँ अग्नि होती है ( व्याप्ति) जैसेपाकशाला (दृष्टान्त) (४) इस पर्वत में भी धूम है ( उपनय ) (५) इसलिए पर्वत में अग्नि है (निगमन) श्रवयव संज्ञा एते पक्षप्रयोगादयः पञ्चाप्यवयवसंज्ञया कीर्त्त्यन्ते ॥ ५३ ॥ अर्थ - पक्ष, हेतु आदि पाँचों अनुमान के अंग 'अवयव ' कहलाते हैं । हेतु के भेद उक्त लक्षणो हेतुर्द्विप्रकारः, उपलब्धि - अनुपलब्धिभ्यां भिद्यमानत्वात् ॥५४॥ उपलब्धिर्विधिनिषेधयोः सिद्धिनिबन्धनमनुपलब्धिश्च ॥ ५५ ॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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