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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (५२) प्रतिषेध के भेद स चतुर्था-प्रागभावः, प्रध्वंसाभावः, इतरेतराभावोऽत्यन्ताभावश्च ॥५८॥ अर्थ-प्रतिषेध ( अभाव ) चार प्रकार का है-प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, इतरेतराभाव और अत्यन्ताभाव । प्रागभाव का स्वरूप यन्निवृत्तावेव कार्यस्य समुत्पत्तिः सोऽस्य प्रागभावः॥५६॥ यथा मृत्पिएडनिवृत्तावेव समुत्पद्यमानस्य घटस्य मृत्पिण्डः॥६०॥ ____ अर्थ-जिस पदार्थ के नाश होने पर ही कार्य की उत्पत्ति हो वह पदार्थ उस कार्य का प्रागभाव है। जैसे मिट्टी के पिण्ड का नाश होने पर ही उत्पन्न होने वाले घट का प्रागभाव मिट्टी का पिण्ड है। . विवेचन-किसी भी कार्य की उत्पत्ति होने से पहले उसका जो अभाव होता है वह प्रागभाव कहलाता है। यहाँ सद्प मिट्टी के पिण्ड को घट का प्रागभाव बतलाया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि, अभाव एकान्त असत्तारूप (नुच्छाभावरूप) नहीं है, किन्तु पदार्थान्तर रूप है। आगे भी इसी प्रकार समझना चाहिए । . प्रध्वंसाभाव का स्वरूप यदुत्पत्तौ कार्यस्यारश्यं विपत्तिः सोऽस्य प्रध्वंसाभावः ॥६॥ यथा कपालकदम्बकोत्पत्ती नियमतो विपद्यमानस्य कलशस्य कपालकदम्बकम् ॥ ६२ ॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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