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________________ .. (४२) - [प्रथम परिच्छेद लिए यही पर्याप्त हैं ! इस सम्बन्ध का विशेष विचार आगे किया जायगा। हेतु प्रयोग के भेद हेतुप्रयोगस्तथोपपत्ति-अन्यथानुपपत्तिभ्यां द्विप्रकारः । ॥२६॥ सत्येव साध्ये हेतोरुपपत्तिस्तथोपपत्तिः, असति साध्ये हेतोरनुपपत्तिरेवान्यथानुपपत्तिः ॥३०॥ यथा-कृशानुमानयं पाकप्रदेशः, सत्येव कृशानुमत्त्वे धूमवत्त्वस्योपपत्तेः, असत्यनुपपत्तेर्वा ॥३१॥ ___ अनयोरन्यतरप्रयोगेणैव साध्यप्रतिपत्तौ द्वितीयप्रयोगस्यैकत्रानुपयोगः ॥३२॥ अर्थ-तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति के भेद से हेतु दो प्रकार से बोला जाता है। साध्य के होने पर ही हेतु का होना ( बताना ) तथोपपत्ति है और साध्य के अभाव में हेतु का अभाव होना ( बताना) अन्यथानुपपत्ति है। जैसे—यह पाकशाला अग्निवाली है, क्योंकि अग्नि के होने पर ही धूम हो सकता है, या क्योंकि अग्नि के बिना धूम नहीं हो सकता। तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति में से किसी एक का प्रयोग करने से ही साध्य का ज्ञान होजाता है अतः एक ही जगह दोनों का प्रयोग करना व्यर्थ है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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