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________________ (४१) [प्रथम परिच्छेद . अर्थ-प्रत्यक्ष द्वारा जाने हुए पदार्थ का उल्लेख करने वाले वचन परार्थ प्रत्यक्ष हैं, क्योंकि उन वचनों से दूसरे को प्रत्यक्ष होता है। जैसे-देखो, सामने, चमकती हुई किरणों वाली मणियों के टुकड़ों से जड़े हुए आभूषणों को धारण करने वाली जिन भगवान् की प्रतिमा है। विवेचन-जैसे अनुमान द्वारा जानी हुई बात शब्दों द्वारा कहना परार्थानुमान है उसी प्रकार प्रत्यक्ष द्वारा जानी हुई बात को शब्दों से कहना परार्थ प्रत्यक्ष है । परार्थानुमान जैसे अनुमान का कारण है उसी प्रकारपरार्थ प्रत्यक्ष, प्रत्यक्ष का कारण है। यह परार्थ प्रत्यक्ष भी शब्दात्मक होने के कारण उपचार से प्रमाण है। अनुमान के अवयव पक्षहेतुवचनमवयवद्वयमेव परप्रतिपत्तेरंगे, न दृष्टान्तादिवचनम् ॥२८॥ अर्थ-पक्ष का प्रयोग और हेतु का प्रयोग, यह दो अवयव ही दूसरों को समझाने के कारण हैं, दृष्टान्त आदि का प्रयोग नहीं । विवेचन-परार्थानुमान के अवयवों के सम्बन्ध में अनेक मत हैं । सांख्य लोग पक्ष, हेतु और दृष्टान्त यह तीन अवयव मानते हैं, मीमांसक उपनय के साथ चार अवयव मानते हैं, और यौग लोग निगमन को इनमें सम्मिलित करके पाँच अवयव मानते हैं। इन सब मतों का निरसन करते हुए पक्ष और हेतु इन दो ही अवयवों का समर्थन किया गया है, क्योंकि दूसरे को समझाने के
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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