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________________ (४३) " [प्रथम परिच्छेद विवेचन - यहाँ हेतु के प्रयोग की विविधता बताई गई है। तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति रूप हेतुओं में अर्थका भेद नहीं है। केवल एक में विधि रूप से प्रयोग है और दूसरे में निषेध रूप से । दोनों का आशय एक है अतएव किसी भी एक का प्रयोग करना पर्याप्त है, दोनों को एक साथ बोलना अनुपयोगी है। दृष्टान्त अनुमान का अवयव नहीं है न दृष्टान्तवचनं परप्रतिपत्तये प्रभवति, तस्यां पक्षहेतुवचनयोरेव व्यापारोपलब्धेः ॥ ३३ ॥ न चहेतोरन्यथानुपपत्तिनिर्णोतये, यथोक्ततर्कप्रमाणादेव तदुपपत्तेः॥ ३४ ॥ नियतैकविशेषस्वभावे च दृष्टान्ते साकल्येन व्याप्तरयोगतो विप्रतिपत्तौ तदन्तरापेक्षायामनवस्थिते१निवारः समवतारः ॥ ३५ ॥ - नाप्यविनाभावस्मृतये, प्रतिपन्न प्रतिबन्धस्य व्युत्पन्नमतेः पक्षहेतुप्रदर्शनेनैव तत्प्रसिद्धः॥ ३६ ॥ अर्थ-दृष्टान्त दूसरे को समझाने के लिए नहीं है, क्योंकि दूसरे को समझाने में पक्ष और हेतु के प्रयोग का ही व्यापार देखा जाता है । दृष्टान्त, हेतु के अविनाभाव का निर्णय करने के लिये भी . नहीं, क्योंकि पूर्वोक्त तर्क प्रमाण से अविनाभाव का निर्णय होता है।। दृष्टान्त, निश्चित एक विशेष ‘स्वभाव वाला होता है.
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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