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________________ प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (४०) तीन प्रकार के हेतु का प्रयोग करके ही उनका समर्थन करने वाला, ऐसा कौन होगा जो पक्ष का प्रयोग करना स्वीकार न करे ? विवेचन - बौद्ध पक्ष का प्रयोग करना आवश्यक नहीं माते। उनके मत का विरोध करने के लिए यहाँ यह कहा गया है कि अगर पक्ष का प्रयोग न किया जायगा तो साध्य कहाँ सिद्ध किया जा रहा है, यह मालूम नहीं पड़ेगा । साध्य का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध बताने के लिए पक्ष अवश्य बोलना चाहिए । 'पर्वत में अग्नि है, क्योंकि धूम है, जहाँ घूम होता है वहाँ अग्नि होती है, जैसे पाकशाला, इस पर्वत में भी धूम है।' इस अनुमान में 'इस पर्वत में भी धूम है' यह उपनय है । यहाँ हेतु को दोहराया गया है। हेतु को दोहराने का प्रयोजन यह है कि साधन का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध बताया जाय। इसी प्रकार साध्य का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध बताने के लिए पक्ष भी बोलना चाहिए । जैसे हेतु का कथन करने के बाद ही उसका समर्थन किया जा सकता है - हेतु का प्रयोग किये बिना समर्थन नहीं हो सकता, उसी प्रकार पक्ष का प्रयोग किये विना साध्य के आधार का निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता । ( बौद्धों ने स्वभाव, कार्य और अनुपलब्धि, यह तीन प्रकार के हेतु माने हैं ) परार्थ प्रत्यक्ष प्रत्यक्षपरिच्छिन्नार्थाभिधायि वचनं परार्थ प्रत्यक्षं, परप्रत्यक्षहेतुत्वात् ॥२६॥ यथा- पश्य पुरः स्फुरत्किरणमणिखण्डमण्डिता भरणभारिणीं जिनपतिप्रतिमामिति ||२७||
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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