SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१२८) सना ( माध्य ) के अभाव में सन्देह है अर्थात् सुगत में न असर्वज्ञता का प्रभाव निश्चित है और न अनाप्तता का अभाव निश्चित है। (५) प्रसिद्धसाधनव्यतिरेक दृष्टान्ताभास अनादेयवचनः कश्चिद्विवक्षितः पुरुषो गगादिमत्त्वात् यः पुनरादेयवचनः स वीतरागस्तद्यथा शुद्धोदनिरिति संदिग्धसाधनव्यतिरेकः, शौद्धोदनौ रागादिमत्त्वस्य निवृत्तेः संशयात् ।। ७५ ॥ अर्थ-कोई विवक्षित पुरुष अग्राह्य वचन वाला है, क्योंकि वह गगादि वाला है, जो ग्राह्य वचन वाला होना है वह वीतराग होता है। जैसे बुद्ध । यहाँ 'बुद्ध' दृष्टान्त संदिग्धसाधनव्यतिरेक है है क्योंकि बुद्ध में रागादिमत्व (साधन ) के अभाव में संदेह । (६ ) संदिग्ध-उभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास न वीतरागः कपिलः करुणास्पदेष्वपि परमकृपयाऽनर्पितनिजपिशितशकलत्वात् , यस्तु वीतरागः स करुणास्पदेषु परमकृपया समर्पितनिजपिशितशकलस्तद्यथा तपनबन्धुरिति संदिग्धोभयव्यतिरेकः; तपनबन्धौ वीतरागत्वाभावस्य करुणास्पदेष्वपि परमकृपया समर्पितनिजपिशितशकलत्वस्य च व्यावृत्तेः संशयात् ।। ७६ ॥ . अर्थ-कपिल वीतराग नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने दया-पात्र व्यक्तियों को भी परम कृपा से प्रेरित होकर अपने शरीर के मांस
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy