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________________ (१२७) [ षष्ठ परिच्छेद अर्थ-प्रत्यक्ष निर्विकल्पक (अनिश्चयात्मकः) है, क्योंकि वह प्रमाण है। जो निर्विकल्पक नहीं होता वह प्रमाण नहीं होता जैसे अनुमान । यहाँ 'अनुमान' दृष्टान्त अमिद्धसाधनव्यतिरेक दृष्टान्नाभास है क्योंकि उसमें 'प्रमाणत्व' (हेतु) का अभाव नहीं है अर्थात् अनुमान प्रमाण है। (३) प्रसिद्ध-उभयन्यतिरेक दृष्टान्ताभास नित्यानित्यः शब्दः सत्त्वात् , यस्तु न नित्यानित्यः स न संस्तद्यथास्तम्मः इत्यसिद्धोभयव्यतिरेकः स्तम्भान्नित्यानित्य. त्वस्य सत्त्वस्य चाव्यावृत्तेः ॥ ७३ ॥ ___ अर्थ- शब्द नित्य-अनित्य रूप है क्योंकि सत् है, जो नित्यअनित्य नहीं होता वह सत् नहीं होना जैसे स्तम्भ । यहाँ स्तम्भ दृष्टान्त अमिद्ध-उभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि स्तम्भ में नित्यानिन्यता ( साध्य) और सत्त्व (साधन ) दोनों का अभाव नहीं है अर्थात् स्तम्भ निन्यानित्य भी है और सत् भी है। (४) संदिग्ध साध्यन्यतिरेक दृष्टान्ताभास ___ असर्वज्ञोऽनाप्तो वा कपिलोऽक्षणिकैकान्तवादित्वात् । यः सर्वज्ञ प्राप्तो वा स क्षणिकैकान्तवादी यथा सुगतः, इति संदिग्धसाध्यव्यतिरेकः सुगते ॥ ७४ ॥ अर्थ-कपिल सर्वज्ञ अथवा प्राप्त नहीं हैं क्योंकि वह एकान्तनित्यवादी हैं, जो सर्वज्ञ अथवा प्राप्त होता है वह एकान्त क्षणिकवादी होता है, जैसे सुगत (बुद्ध) । यहाँ 'सुगत' दृष्टान्त संदिग्धसाध्यव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि सुगत में असर्वज्ञता अथवा अना
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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