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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१२६) . (१) असिद्धमाध्यव्यतिरेक (२) असिद्धसाधनव्यतिरेक (३) असिद्ध उभयव्यतिरेक (४) संदिग्धसाध्यव्यनिरेक (५) संदिग्ध साधनव्यतिरेक (६) संदिग्धोभयव्यतिरेक (७) अव्यतिरेक (5) अप्रदर्शितव्यतिरेक (६) विपरीतव्यतिरेक ॥ विवेचन-वैधर्म्य दृष्टान्त में निश्चित रूप से साध्य और साधन का अभाव दिखाना पड़ता है। जिस दृष्टान्त में साध्य का, साधन का या दोनों का अभाव न हो या अभाव संदिग्ध हो अथवा अभाव ठीक तरह बताया न गया हो वह वैधयं दृष्टान्ताभास कहलाता है। उसके भी नौ भेद हैं। (१) असिद्धसाध्यन्यतिरेक दृष्टान्ताभास तेषु भ्रान्तमनुमानं प्रमाणत्वात् , यत्पुनन्तिं न भवति न तत् प्रमाणं यथा स्वप्नज्ञानमिति-असिद्धसाध्यव्यतिरेकः, स्वप्नज्ञानाद् भ्रान्तत्वस्यानिवृत्तिः ॥ ७१ ॥ __अर्थ-अनुमान भ्रान्त है क्योंकि वह प्रमाण है, जो भ्रान्त नहीं होता वह प्रमाण भी नहीं होता, जैसे स्वप्नज्ञान। यहाँ स्वप्नज्ञान' यह उदाहरण प्रसिद्ध-साध्य व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि स्वप्नज्ञान में भ्रान्तता ( माध्य ) का प्रभाव नहीं है। (२) प्रसिद्धसाधनव्यतिरेक दृष्टान्ताभास . निर्विकल्पकं प्रत्यक्षं प्रमाणत्वात् , यत्तु सविकल्पकं न तत्प्रमाणं यथा लैङ्गिकमित्यसिद्धसाधनव्यतिरेको, लैङ्गिकात् प्रमाणत्वस्यानिवृत्तः ॥ ७२ ॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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