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________________ (१२५) [ षष्ठ परिच्छेद विवेचन-जिस दृष्टान्त में अन्वयव्याप्ति तो हो किन्तु वादी ने वचन द्वाग उसका कथन न किया हो, उसे अप्रदर्शितान्वय दृष्टान्ताभास कहते हैं । यहाँ घट में अनित्यता और कृतकता भी है, मगर अन्वय प्रदर्शित न करने के कारण ही यह दोष है। (6) विपरीतान्वय दृष्टोन्ताभास अनित्यः शब्दः कृतकत्वात्, यदनित्यं तत्कृतकं, घटवदितिविपरीतान्वयः ॥६८॥ अर्थ-शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है; जो अनित्य होता है, वह कृतक होता है; जैसे घट । यह विपरीतान्वय दृष्टान्ताभास है। विवेचन- अन्वय व्याप्ति में साधन होने पर साध्य का होना बताया जाता है, पर यहाँ साध्य के होने पर साधन का होना बताया गया है, इसलिए यह विपरीत अन्वय हुआ । यह विपरीत अन्वय घट दृष्टान्त में बताया गया है अत: घट दृष्टान्त विपरीतान्वय दृष्टान्ताभास है। वैधर्म्य दृष्टान्ताभास वैधयेणापि दृष्टान्ताभासो नवधा ॥६६॥ असिद्धसाध्यव्यतिरेको, ऽसिद्धसाधनव्यतिरेको ऽसिद्धोभयव्यतिरेकः, संदिग्धसाध्यव्यतिरेकः संदिग्ध साधनव्यतिरेकः, संदिग्धोभयव्यतिरेको, ऽव्यतिरेको, प्रदर्शितव्यतिरेको, विपरीतव्यतिरेकश्च ॥ ७० ॥ अर्थ-वैधर्म्य दृष्टान्ताभास नौ प्रकार का है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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