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________________ प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (१२२) विवेचन – साधर्म्य दृष्टान्त में साध्य और साधन का निश्चित रूप से अस्तित्व होना चाहिए। जिस दृष्टान्त में साध्य का, साधन का, या दोनों का अस्तित्व न हो, या अस्तित्व अनिश्चित हो अथवा साधर्म्य दृष्टान्त का ठीक तरह प्रयोग न किया गया हो वह साधर्म्य दृष्टान्ताभास कहलाता है । (१) साध्य - विकल दृष्टान्ताभा तत्रापौरुषेयः शब्दोऽमूर्त्तत्वात्, दुःखवदिति साध्यधर्मविकलः ॥ ६० ॥ - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि अमूर्त है, जैसे दुःख । यहाँ दुःख उदाहरण साध्यविकल है क्योंकि उसमें अपौरुषेयत्व साध्य नहीं रहता ॥ (२) साधनधर्मविकल दृष्टान्ताभास तस्यामेव प्रतिज्ञायां तस्मिन्नेव हेतौ परमाणुवदिति साधनधर्मविकलः ||६१॥ - अर्थ — इसी प्रतिज्ञा में और इसी हेतु में 'परमाणु' का उदाहरण साधनविकल है 1 विवेचन - शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त्त है, जैसे परमाणुः यहाँ परमाणु में अमूर्तता हेतु नहीं पाया जाना, क्योंकि परमाणु मूर्त्त है | अतः यह साधनविकल दृष्टान्ताभास हुआ । (३) उभयधर्मविकल दृष्टान्ताभास कलशवदित्युभयधर्मविकलः ॥ ६२ ॥ -
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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