SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२१) [ षष्ठ परिच्छेद शब्द नित्य है, क्योंकि प्रमेय है; यहाँ निष्यता साध्य है । इस साध्य का अभाव घट आदि अनित्य पदार्थों में पाया जाता है अतः घट आदि विपक्ष हुए और उनमें प्रमेयस्व ( हेतु ) निश्चित रूप से रहता है ( क्योंकि घट आदि भी प्रमेय प्रमाण के त्रिषय - हैं ) इसलिए प्रमेयत्व हेतु निर्णीतविपक्षवृत्तिक अनैकान्तिक हेत्वाभास हुआ । विवादग्रस्त पुरुष सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि वक्ता हैं, यहाँ सर्वज्ञता का अभाव साध्य है । इस माध्य का अभाव सर्वज्ञ में पाया जाता है अतः सर्वज्ञ विपक्ष हुआ । उस विपक्ष सर्वज्ञ में वक्तृस्त्र रह सकता है, अत: यह हेतु संदिग्धविपक्षवृत्तिक अनैकान्तिक हेत्वाभास है । विरुद्ध हेत्वाभास विपक्ष में ही रहता है और अनैकान्तिक हेत्वाभास पक्ष, सपक्ष, और विपक्ष तीनों में रहता है । श्रनैकान्तिक को व्यभिचारी हेतु भी कहते हैं। दृष्टान्ताभास साधर्म्येण दृष्टान्ताभासो नवप्रकारः || ५८ ॥ साध्यधर्मविकलः, साधनधर्मविकलः, उभयधर्मविकलः, संदिग्धसाध्यधर्मा, संदिग्धसाधनधर्मा, संदिग्धो भयधर्मा, अनन्वयो, प्रदर्शितान्वयो, विपरीतान्वयश्चेति ॥ ५६ ॥ अर्थ-साधर्म्य दृष्टान्ताभास के नौ भेद हैं । (१) साध्यधर्म विकल (२) साधनधर्मविकल (३) उभयधर्मविकल (४) संदिग्धसाध्यधर्म (५) संदिग्ध सावनधर्म (६) संदिग्ध उभयधर्म (७) अनन्वय (८) अप्रदर्शितान्वय और (६) विपरीतान्वय ||
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy