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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] . (४) जैसे घट । सन्निकर्ष स्व-पर के निश्चय में करण नहीं है इस कारण प्रमाण नहीं है। सनिकर्ष स्व-पर-व्यवसायी नहीं है न खल्वस्य स्वनिर्णीतौ करणत्वम् , स्तम्भादरिवाचेतनत्वात् ; नाप्यर्थनिश्चितौ स्वनिश्चितावकरणस्य कुम्भादेरिव तत्राप्यकरणत्वात् ॥५॥ अर्थ-सन्निकर्ष आदि स्व-निर्णय में करण नहीं हैं, क्योंकि वे अचेतन हैं; जैसे खम्भा वगैरह । सन्निकर्ष आदि अर्थ (पदार्थ) के निर्णय में भी करण नहीं हैं, क्योंकि जो स्व-निर्णय में करण नहीं होता वह अर्थ के निर्णय में भी करण नहीं होता, जैसे घट आदि । विवेचन–सन्निकर्ष की प्रमाणता का निषेध करने के लिए 'वह स्व-पर के निश्चय में करण नहीं है' यह हेतु दिया गया था। किन्तु यह हेतु प्रतिवादी-वैशेषिक को सिद्ध नहीं है और न्याय-शास्त्र के अनुसार हेतु प्रतिवादी को भी सिद्ध होना चाहिए। जिस हेतु को प्रतिवादी स्वीकार नहीं करता वह असिद्ध हेत्वाभास हो जाता है। इस प्रकार जब हेतु असिद्ध हो जाता है तब उस हेतु को साध्य बना कर उसे सिद्ध करने के लिए दूसरे हेतु का प्रयोग करना पड़ता है। यहां यही पद्धति उपयोग में ली गई है । पूर्वोक्त हेतु के दो खण्ड करके दोनों को सिद्ध करने के लिए यहां दो हेतु दिये गये हैं। भाव यह है-सन्निकर्ष स्व के निश्चय में करण नहीं है, क्योंकि बह अचेतन है; जो-जो अचेतन होता है वह-वह स्व-निश्चय में करण नहीं होता, जैसे स्तम्भ । तथा
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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