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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। इहां तर्क करै है जो-कालका व्यवधान कहिये अंतर होतें भी कार्यकारणभाव देखिये है जैसैं जागताकी दशाका ज्ञानकै अर सोयकरि फेरि जागताकी दशाका ज्ञानकै कार्यकारणाभाव है, तथा मरणकै अर पहले आवते अरिष्टकै कार्यकारणभाव है, ऐसा तर्कका परिहारकै अर्थि सूत्र कहै है; भाव्यतीतयोमरणजाग्रबोधयोरपि नारिष्टोडोधौ प्रति हेतुत्वम् ॥ ५७ ॥ __याका अर्थ-आगामी होगा ऐसा तौ मरण अर पहले जागै था ताका अतीतज्ञान इनि दोऊनिकै मरणकै पहलै आया जो अरिष्ट अर सूतां पीछे जाग्याकी अवस्थाका ज्ञान इनिकै कारणकार्यभाव नाही है । अरिष्ट तौ आवै अर मरण होय तथा नाही भी होय अर सूता जागै तब पूर्वली बात यादि आवै तथा नाही यादि आवै ॥ ५७ ॥ याहीका समर्थन करें हैं; तदयापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ॥ ५८॥ ___याका अर्थ-इहां 'हि' शब्द हेतु अर्थमैं है तातैं यह अर्थ है जातें तिस कारणके सद्भाव होते कार्यका होना है सो कार्यमैं है सो कारणके व्यापारकै आश्रय है, तातैं जो पूर्व कहे जाग्रत्दशा अर प्रबोधदशाका ज्ञान अर मरण अर अरिष्ट इनिकै तौ कारणकै अर कार्यकै कालका अंतर है तहां कारणकै व्यापारका आश्रय काहेका ? तातै कार्यकारणभाव नाही है । इहां यह अर्थ-जो अन्वय व्यतिरेककरि निश्चयरूप सर्वत्र कार्यकारणभाव है सो ये दोऊ कार्य प्रति कारणके व्यापारकी अपेक्षा लिये ही होय है जैसैं कुंभकारकै कलश प्रति होय है । जो कुंभकार होय तौ कलश होय न होय तौ न होय तैसैं है । सो जे अतिव्यव
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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