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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । पिछलारूपका क्षणस्वरूप कार्य ताहि करता संता ही रूप” विजातीय जो रस तिसस्वरूप कार्यकू करै है, ऐसैं रसौं रूपका अनुमानकू इष्ट करता मानता जो बौद्धमती सो किस ही कारणकं हेतु इष्ट करै ही हैमानैं ही है, जातै पहला रूपका क्षण है तातें अपनां सजातीय रूपका दूसरा क्षणकै व्यभिचार नाही है, उत्तर क्षणनामा कार्यकू उपजावै ही है। जो ऐसैं न मानें तो रसके ही काल रूपकी प्राप्तिका अयोग ठहरे। बहुरि अंत्यक्षण प्राप्त भया जो कारण तथा अनुकूलमात्रहीकू नाही लिंग मानिये है । जाकरि मणिमंत्र आदिकरि जाकी सामर्थ्य रुकनेरौं तथा अन्य सहकारी कारणका सकलपणां न होनेंतें कार्य नांहीं उपजावै तब कारणनामा हेतुकै व्यभिचारीपणां आवै । अर दूसरे क्षण कार्य प्रत्यक्ष देखिकरि कारण मानि तिस कारणनै अनुमान करिये तब अनुमानकै अनर्थकपणां आवै । हमनैं तौ कार्यतै अविनाभावीपणांकरि निश्चय किया ऐसा जो छत्र आदि कारण ताकू छाया आदिका लिंगपणांकरि अंगीकार किया है । जहां जाकी सामर्थ्य तौ काहूकरि रुकै नांही अर सहकारी अन्यकारणका सकलपणां होय कोई सहकारी घटता न होय ऐसा निश्चयनै कारण• हेतु मान्यां है सो तिस ही कारणकै लिंगपणां है, अन्य जामैं व्यभिचार दीखै सो कारण हेतु नांहीं है तातें बौद्ध कहै सो दोष नांहीं है। ___ इहां भावार्थ यह-जो बौद्धमती कारणकू तौ हेतु कहै नांही अर मानैं ऐसैं जो काहूनै अंधारेमैं विजोरा आदि फलका रस चाख्या तब ताका अनुमान भया जो यह रस विजोरा आदिका है। पीछे तिस विजोरा आदि कारणनै ताके रूपका अनुमान किया सो ऐसे अनुमानमैं तौ कारण हेतु आया ही, अर यामैं व्यभिचार भी नांहीं । जातै सर्व तत्वकू क्षणिक मानि ऐसैं कहै है-पहला क्षण तौ कारण है अर उत्त
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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