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________________ २ आप्त-मीमांसा । शेषभंगाश्च नेतव्या यथोक्तनययोगतः । न च कश्चिद्विरोधोऽस्ति मुनीन्द्र ! तव शासने ॥ २० ॥ अर्थ - शेषभंगा : कहिये बाकीके तीन भंग हैं ते पूर्वै जे अस्तित्व नास्तित्वकी दोय कारिका मैं नय कही ताके योगतैं प्राप्त करणें, तहां हे मुनीन्द्र ! तुम्हारे शासन कहिये आज्ञा-मत तामैं किछू भी विरोध नाहीं है । यहां कारिका मैं शेष वचन है सो उत्तरके तीन भंगनिकी अपेक्षा है जातैं पहली दोय कारिकामैं अस्तित्त्व नास्तित्त्वदोऊ ही अपने अपने प्रतिपक्षीकी अपेक्षा विशेषणपणां हेतुतैं साधै । बहुरि या कारिकातैं पहलें कारिका मैं विधिप्रतिषेधस्वरूप विशेष्यवस्तुकूं शब्दगोचरतैं साध्या सो यहू तीसरा भंग साध्या सो याकूं भी विशेषणपणां हेतुतैं अपना प्रतिपक्षीकी अपेक्षा विधिनिषेधरूप जाननां । बहुरि तैसैं सामर्थ्यतैं अवक्तव्य ही अपणां प्रतिपक्षी वक्तव्य धर्म ताकी अपेक्षा विशेषणपणां हेतुतें विधिनिषेधरूप जानना, ऐसें घ्यार भंग तौ यह अर शेष तीन भंग अस्तित्त्वा वक्तव्य, नास्तित्त्वावक्तव्य, अस्तित्त्वनास्तित्त्वावक्तव्य ऐसैं अपने अपने प्रतिपक्षीकी अपेक्षा विशेषणपणां हेतुतैं विधिप्रतिषेधरूप जाननें, 'विशेषणत्त्वात्, ऐसा नययोग है सो सर्वके लगावणां जातैं एकधर्मी जीवादिक वस्तुविशेषनिविषै एक धर्म विशेषण है ऐसैं सर्वज्ञके मतमैं किछू भी विरोध नाहीं है अपने प्रतिपक्षी धर्मतैं अविनाभावी विशेषणं जे अन्यवादी नाहीं साधे हैं तिनके मत में विरोध आवै है ॥ २० ॥ आमैं अब आचार्य कहैं हैं - विधिनिषेधकरि अवस्थित नाहीं ऐसा अनेकान्तात्मक वस्तु है सो सप्तभंगी वाणीकी विधिका भागी है सोही अर्थकियाका कहनेवाला है । बहुरि अन्यप्रकार नाहीं है । जो अस्ति ही है तथा नास्तित्व ही है ऐसी कल्पना सर्वथा एकान्तरूप करै है सो असत्
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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