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________________ -२८ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् बहुरि केई ऐसैं कहैं हैं जो वस्तुका स्वरूप तौ वचनगोचर नाहीं तातें कहना बणें नाहीं । बहुरि केई ऐसैं कहैं हैं जो जीवादिक वस्तुकै अत्यंत भेद ही है जैसे घट पट भिन्न है तातें अस्तित्व नास्तित्व भिन्न ही हैं-तिन स्वरूप वस्तु नाहीं ऐसैं कहनेवालेनि प्रति आचार्य कहैं हैं विधेयप्रतिषेध्यात्मा विशेष्यः शब्दगोचरः। साध्यधर्मो यथा हेतुरहेतुश्चाप्यपेक्षया ॥ १९ ॥ अर्थ-विशेष्य कहिये विशेषणके योग्य सर्व ही जीवादिक पदार्थ हैं सो, विधेय कहिये विधिक योग्य अस्तित्वधर्म, अर प्रतिषेध्य कहिये निषेध योग्य नास्तित्वधर्म इनि दोऊ धर्मनिस्वरूप है। जातें विशषणके योग्य विशेष्य होय सो ऐसा ही होय । बहुरि इस विशेषणपणांक साधनेकू विशेषण (विशेष्य) है, सो कैसा है ? विशेष्यः शब्दगोचरः कहिये शब्दका विषय है अर्थात् जो शब्दकरि कहिये ऐसा विशेष्य विधिप्रतिषेधस्वरूप ही होय। अब याका उदाहरण कहैं हैं-जैसे साध्यका धर्म हेतु है सो अपेक्षाकरि विधिप्रतिषेधस्वरूप ही होय । जहां साध्य... साधै तहां तौ हेतु होय अर जहां साध्या नाहीं साधैं तहां ही अहेतु होय । जैसे शब्दकू अनित्य साधिये तब कृतकपणां ताका धर्मकू हेतु होय सो ताकै अनित्यपणां साधै । बहुरि सो ही कृतकपणां शब्दकू नित्य साधनेमैं अहेतु होय । तथा जहां अग्निमानपणां साधिये तहां धूमवानपणां हेतु है सो ही ताके विपक्ष जलके निवासविर्षे अहेतु है ऐसें जानना । ऐसें विधिप्रतिषेधस्वरूप जीवादिक पदार्थ हैं सो शब्दगोचर हैं ऐसा सिद्ध होय है ॥ १९ ॥ आगें पूछे हैं-जो च्यार भंग तौ स्पष्ट किये बाकी तीन भंग कैसैं प्राप्त करणे, ऐसैं पू. आचार्य उत्तर कहैं हैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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