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________________ (५४) नयचक्रसार हि० अ० देखो । एक ही वस्तु अमुक अपेक्षासे 'अस्ति ' है यह निश्चित बात है; और अमुक अपेक्षासे ' नास्ति' है, यह भी बात निश्चित है । इसी तरह, एक वस्तु अमुकं दृष्टिसे नित्यस्वरूप भी निश्चित है और अमुक दृष्टिसे अनित्यस्वरूप भी निश्चित है। इस तरह एक ही पदार्थको परस्परमें विरुद्ध* मालूम होनेवाले दो धर्मीसहित होनेका जो निश्चय करना है, वही स्यावाद है। इस स्याद्वादका 'संशयवाद' कहना मानो प्रकाशको अंधकार बताना है । " स्याद् अस्त्येव घट: " स्याद् नास्त्येव घटः ।" " स्याद् नित्य एव घटः" स्याद् अनित्य एव घटः । ५ . ___ स्याद्वादके 'एव'कार युक्त इन वाक्योंमें-अमुकर अपेक्षासे घट 'सत्' ही है और अमुक अपेक्षासे घट 'असत्' ही है । अमुक अपेक्षासे घट · नित्य ' ही है और अमुक अपेक्षासे घट 'भनित्य' ही है-इस प्रकार निश्चयात्मक अर्थ समझना चाहिए । ' स्यात् ' शब्दका अर्थ 'कदाचित् ' 'शायद' या इसी प्रकारके दूसरे संशयात्मक शब्दोंसे नहीं करना चाहिए । निश्चयवादमें संशयात्मक * वास्तवमें विरुद्ध नहीं । x 'स्यात् ' शब्दका अर्थ होता है-अमुक अपेक्षासे । ( सप्तभङ्गीमें, आगे ईसका विशेष विवेचन है )...विशाल दृष्टिसे दर्शनशास्त्रोंका अवलोकन करनेवाले भली प्रकारसे समझ सकते हैं कि, प्रत्येक दर्शनकारको 'स्याद्वाद सिद्धान्त ' स्वीकारना पड़ा है । सत्व, रज और तम, इन तीन परस्पर
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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