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स्याद्वाद स्वरूप.
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लोगोंको यह कथन-यह प्रश्न अयुक्त जान पडता है । जो संशयके स्वरूपको अच्छी तरह समझते हैं, वे स्याद्वादको संशयवाद कहनेका कभी साहस नहीं करते । कई वार रातमें, काली रस्सीको देखकर संदेह होता है कि-" यह सर्प है या रस्सी ?" दूरसे वृक्षके दूँठको देखकर संदेह होता है कि-" यह मनुष्य है या वृक्ष ?" ऐसी संशयकी अनेक बातें है, जिनका हम कई वार अनुभव करते हैं । इस संशयमें सर्प और रस्सी अथवा वृक्ष और मनुष्य दोनों से एक भी वस्तु निश्चित नहीं होती है। पदार्थका ठीक तरहसे समझमें न आना हो संशय है । क्या कोई स्याद्वादमें इस तरहका संशय बता सकता है ? स्याद्बाद कहता है कि, एक ही वस्तुका भिन्न भिन्न अपेक्षासे; अनेक तरहसे स्याद्वादके संबंधमें कहा थाः-" स्याद्वादका सिद्धान्त अनेक सिद्धान्तोंको देखकर उनका समन्बय करनेके लिए प्रकट किया गया है । स्याद्वाद हमारे सामने एकी भावका दृष्टिबिन्दु उपस्थित करता हैं । शंकराचायने स्याद्वादके ऊपर जो आक्षेप किया है, उसा, मूल रहस्यके साथ कोई संबंध नहीं है । यह निश्चय हैं कि विविधदृष्टिबिन्दुओं द्वारा निरीक्षण किये विना किसी वस्तुका संपूर्ण स्वरूप समझमें नहीं आ सकता हैं । इस लिए स्याद्वाद उपयोगी और सार्थक हैं। महावीरके सिद्धान्तोमें बताये गये स्याद्वदको कई संशयवाद बताते हैं । मगर मैं यह बात नहीं मानता। स्याद्वाद संशयवाद नहीं है। यह हमको एक मार्ग बत्ताता है-यह हमें सिखाता हैं कि विश्वका अवलोकन किस तरह करना चाहिए।
काशीके स्वर्गीय महामहोपाध्याय राममिप्रशाबोने स्याद्धादके लिए अपना जो उत्तम अभिप्राय दिया था उसके लिए उनका. 'सुजनसम्मेलन ' शीर्षक व्याख्यान देखना चाहिए। -