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________________ नयचक्रसार हि० अ० लोक के विषय अनन्त हैं इसी तरह दो अणुवाले स्कंध अनन्त हैं, तीन अणुवाले स्कंध अनन्त हैं, एवं यावत् संख्याते अणुवाले स्कंध अनन्ते हैं. असंख्याते अणुवाले स्कंध अनन्ते हैं. और अनन्ते अणुवाले स्कंध भी अनन्ते हैं. इस तरह एकैक आकाश प्रदेश में तथा सर्व लोक में भी अनन्ते २ समझना. ये चारों अस्तिकाय अचेत-चेतना रहित अर्थात् जड़ है. विवेचन-अव पुद्गल द्रव्य का स्वरुप लिखते हैं. जो पूरण अर्थात् वर्णादि गुण की वृद्धि और गलन अर्थात् वर्षादि गुण की हानि एसा जिसमें स्वभाव हो उसको पुद्गलास्तिकाय कहते हैं. उसका मूल द्रव्य परमाणु रुप हैं. अब परमाणु का लक्षण बतलाते हैं. घणुकादि जितने स्कंध हैं उन सब का मूल कारण परमाणु है परन्तु परमाणु का कारण कोई नहीं हैं. न इस को किसीने पैदा किया है और न किसी के मिलावट अर्थात् मिश्रता से उत्पन्न हुवा है. वह परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म एक आकाश प्रदेश की अवगाहना के तुल्य है परन्तु एक आकाश प्रदेश की अवगाहना में अनन्ते परमाणु समाये हुवे हैं यद्यपि एक परमाणु में दूसरा कोइ द्रव्य नहीं समा सक्ता. इस लिये परमाणु सब से सूक्ष्म और नित्य है. जितने परमाणु हैं वे सब स्कंधादि अनेकपने परिणमते हैं. परन्तु वे कभी विनाश को प्राप्त नहीं होते. जो एक परमाणु है उस के विषय एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो स्पर्श ( सूक्ष्म स्कंध में समुच्चय चार स्पर्श होते हैं. रूक्ष, स्निग्ध, शीत, उष्ण इनमें से दो प्रतिपक्षि छोड के शेष
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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