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________________ प्रस्तावना "देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थाणां षट् कर्माणि दिने दिने ॥" तबसे श्रावकके ये ही षट्कर्म प्रचलित हैं। श्रावकके बारह व्रत हम प्रारम्भमें ही लिख आये हैं कि पांच अणुवत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाप्रत ये श्रावकके बारह प्रत हैं। इनको संख्यामें कोई विवाद नहीं है और आचार्य कुन्दकुन्द तकने इनका वर्णन किया है, इसलिए बारह व्रतोंको परम्परा अति प्राचीन है और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें भी मान्य है। पाँच अणुव्रत बारह यतोंमें सर्वप्रथम अणुव्रत आते हैं । अणुव्रतके भेदोंमें तो कोई अन्तर नहीं है पर नाम-भेद मिलता है। उल्लेखनीय नाम-भेद इस प्रकार है: १. आचार्य कुन्दकुन्दने अपने चारित्रप्राभूतमें पांचवें अणुवतका नाम 'परिग्गहारंभ परिमाण' रखा है जिसका तात्पर्य है कि परिग्रह और आरम्भ दोनोंका परिमाण करना चाहिए । तथा चतुर्थ अणुव्रतका नाम रखा है - 'परपिम्म परिहार' इसका अर्थ टीकाकार श्रुतसागर सूरिने 'परस्त्री त्याग' किया है। तथा प्रथम अणुव्रतका नाम 'स्थूल त्रसकायवधपरिहार' रखा है, "थूले तसकायवहे थूले मोसे तितिक्ष थूले य । परिहारो परपिम्मे परिग्गहारंम परिमाणं ॥२३॥" २. स्वामी समन्तभद्रने चतुर्थ अणुव्रतका नाम परदारनिवृत्ति और स्वदारसन्तोष रखा है । तथा पांचवें ___अणुव्रतका नाम परिग्रहपरिमाणके साथ-साथ इच्छापरिमाण भी रखा है। ३. आचार्य रविषणने भी चतुर्थयतका नाम परदारसमागमविरति और पांचवेंका अनन्तगाविरति ___दिया है। ४. हरिवंशपुराणमें पहले यतका नाम 'दया' रखा है। ५. आदिपुराणमें पांचवें व्रतका नाम तृष्णाप्रकर्षनिवृत्ति और चौथेका परस्त्रीसेवननिवृत्ति रखा है। ६. पं० आशाधरजीने चतुर्थ व्रतका नाम स्वदारसन्तोष रखा है। अहिंसाणुव्रत रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें अहिंसाणुव्रतका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है, "संकल्पात्कृतकारितमननाघोगत्रयस्य चरसत्वान् । न हिनस्ति यत्तदाहुः स्थूलवधाद्विरमणं निपुणाः ॥७॥" अर्थात् जो मन, वचन और कायके कृत, कारित और अनुमोदनारूप संकल्पके द्वारा त्रसजीवोंका घात नहीं करता है उसे स्थूलवधका त्यागी यानी अहिंसाणुव्रती कहते हैं । यह अहिंसाणुयतका परिपूर्ण लक्षण है और उत्तर कालमें भी इसमें कुछ घटाने या बढ़ानेकी आव. १. रत्नकरण्ड० श्लो० १३ और १५ । २. पद्मचरित प० १४, ३लोक १८४, १८५ । ३. आ. पु० पर्व १०, श्लो०६३ ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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