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________________ -५३०] उपासकाध्ययन २२३ [इत्याचार्यभक्तिः] इत्युपासकाध्ययने समयसमाचारविधिर्नाम पञ्चत्रिंशत्तमः कल्पः। . इदानीं ये कृतप्रतिमापरिग्रहास्तान्प्रति स्नपनार्यनस्तवजपध्यानभुतदेवताराधनविधीन षट् प्रोदाहरिष्यामः । तथा हि श्रीकेतनं वाग्वनितानिवासं पुण्यार्जनक्षेत्रमुपासकानाम् । स्वर्गापवर्गागमनैकहेतु जिनाभिषेकाश्रयमाश्रयामि ॥५२६॥ भावामृतन मनसि प्रतिलब्धशुद्धिः पुण्यामृतेन च तनौ नितरां पवित्रः । श्रीमण्डपे विविधवस्तुविभूषितायां वेद्यां जिनस्य सवनं विधिवत्तनोमि ॥५२७॥ उदङ्मुखं स्वयं तिष्ठेत्प्राङ्मुखं स्थापयज्जिनम् । पूजाक्षणे भवेन्नित्यं यमी वाचंयमक्रियः ॥२८॥ प्रस्तावना पुराकर्म स्थापना संनिधापनम् ।। पूजा पूजाफलं चेति षड्विधं देवसेवनम् ।।५२६॥ यः श्रीजन्मपयोनिधिर्मनसि च ध्यायन्ति यं योगिनो ___ येनेदं भुवनं सनाथममरा यस्मै नमस्कुर्वते । समान यह पुष्पाञ्जलि आचार्यचरणोंका पूजन करनेसे श्रावकोंकी लक्ष्मीके कटाक्षरूपी भ्रमरोंके आगमनका कारण हो ॥५२५।। [इस प्रकार आचार्य भक्ति समाप्त हुई] [ इस प्रकार उपासकाध्ययनमें पूजा विधिको बतलानेवाला पैंतीसवाँ कल्प समाप्त हुमा ।] ___ अब जो प्रतिमा स्थापना करके पूजन करते हैं उनके लिए अभिषेक, पूजन, स्तवन, जप, ध्यान और श्रुतदेवताका आराधन इन छह विधियोंको बतलाते हैं अभिषेक विधि मैं जिनभगवान्का अभिषेक करनेके लिए जिनबिम्बका सहारा लेता हूँ। जो जिनबिम्ब लक्ष्मीका घर है, सरस्वती देवीका निवास स्थान है, गृहस्थोंके पुण्य कमानेका क्षेत्र है और स्वर्ग तथा मोक्ष को लानेका प्रमुख कारण है ॥५२६॥ शुभ भावरूपी जलसे मेरा मन शुद्ध है और पवित्र जलसे मेरा शरीर शुद्ध है अर्थात् मैंने शुद्ध जलसे स्नान किया है और मेरे मनमें शुभ भाव हैं । मैं श्रीमण्डपमें अनेक वस्तुओंसे विभूषित वेदीपर विधिपूर्वक जिन भगवान्का अभिषेक करता हूँ ॥५२७॥ ऐसी प्रतिज्ञा करके स्वयं उत्तर दिशाकी ओर मुँह करके खड़ा हो और जिनबिम्बका मुख पूर्व दिशाकी ओर करके उनकी स्थापना करे। तथा पूजाके समय सदा अपने मन, वचन और कायको स्थिर रखे ॥५२८॥ देवपूजनके छह प्रकार हैं-प्रस्तावना, पुराकर्म, स्थापना, सन्निधापन, पूजा और पूजाका फल ॥५२९॥ पहले प्रस्तावनाको कहते हैं प्रस्तावना जो लक्ष्मीके जन्मके लिए सागरके समान है, योगीजन मनमें जिसका ध्यान करते हैं, जिसके१. जिनबिम्ब । २. पवित्रजलेन । ३०
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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